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ई-कचरा पर निबंध - Essay on E-waste in Hindi

ई-कचरा पर निबंध: ई-कचरा से तात्पर्य पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से उत्पन्न कचरे से है। ई-कचरा को ई-स्क्रैप या ई-अपशिष्ट के नाम से भी आना जाता है। ई-कच

ई-कचरा पर निबंध - Essay on E-waste in Hindi

प्रस्तावना: आज हम डिजिटल क्रांति के दौर में जी रहे हैं। हर तरफ तकनीक का बोलबाला है। स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर जैसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। लेकिन इन सुविधाओं के साथ-साथ एक बड़ी चुनौती भी सामने आई है - इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा.

जब हम कोई नया गैजेट ले आते हैं, तो पुराना अक्सर बेकार हो जाता है। यही नहीं, तकनीकी विकास इतना तेज़ है कि डिवाइस जल्दी ही पुरानी पड़ जाती है। नतीजा ये होता है कि हर साल भारी मात्रा में ई-कचरा पैदा होता है। इस प्रकार ई-कचरा से तात्पर्य पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से उत्पन्न कचरे से है। ई-कचरा को ई-स्क्रैप या ई-अपशिष्ट के नाम से भी आना जाता है।

ई-कचरे का कारण

ई-कचरे का एक प्रमुख कारण तकनीकी विकास की तीव्र गति है। कंपनियां लगातार नए मॉडल लॉन्च करती हैं, जिसमें बेहतर सुविधाएं, बेहतर प्रदर्शन और आकर्षक डिजाइन होते हैं। इसका मतलब है कि पुराने मॉडल, भले ही वे पूरी तरह से कार्यात्मक हों, जल्दी से अप्रचलित हो जाते हैं। इसके अलावा, लापरवाही और खराब रखरखाव भी उपकरणों के जीवनकाल को कम करते हैं, जिससे वे जल्दी ई-कचरे में बदल जाते हैं। कई बार, निर्माता जानबूझकर उत्पादों को कम टिकाऊ बनाते हैं ताकि लोग उन्हें अधिक बार बदलें। यह रणनीति भी ई-कचरे में भारी वृद्धि का कारण बनती है।

ई-कचरे का संघटन

समस्या सिर्फ मात्रा में नहीं है, बल्कि ई-कचरे के तत्वों में भी है। इसमें कैडमियम, सीसा, पारा जैसे जहरीले रसायन पाए जाते हैं. साथ ही प्लास्टिक और कांच भी मिलते हैं। ये तत्व लैंडफिल में सड़ने के बजाय मिट्टी और पानी में मिल जाते हैं, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है। जलाने पर ये जहरीली गैसें छोड़ते हैं, जो हवा को दूषित करती हैं।

स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव

ई-कचरे का गलत प्रबंधन हमारे स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है. जहरीले रसायनों के कारण सांस संबंधी बीमारियां, त्वचा संबंधी रोग, यहां तक कि कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.

अनदेखी समस्या, अनौपचारिक समाधान

ई-कचरे की समस्या इतनी गंभीर है कि भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है. लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि बड़े पैमाने पर ई-कचरे का अनौपचारिक ढंग से निपटारा होता है. मुंबई का लैमिंगटन रोड, बेंगलुरु का एसपी मार्केट जैसे कई इलाके ई-कचरे के अड्डे बन गए हैं. यहां काम करने वाले श्रमिक खतरनाक परिस्थितियों में, बिना सुरक्षा के ई-कचरे को अलग-अलग करते हैं.

जागरूकता और सख्त नियमों की ज़रूरत

ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए जागरूकता बहुत ज़रूरी है. उपभोक्ताओं को चाहिए कि वो टिकाऊ उत्पादों को चुनें और पुराने डिवाइस को रिपेयर करवाकर इस्तेमाल करें. साथ ही, सरकार को भी सख्त नियम लागू करने चाहिएं. 2012 में लाया गया ई-कचरा प्रबंधन कानून एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसके कड़े पालन की ज़रूरत है.

एक साथ मिलकर बनाएं स्वस्थ भविष्य

ई-कचरा प्रबंधन एक जटिल चुनौती है, लेकिन असंभव नहीं है. सरकार, उद्योग जगत, उपभोक्ता और कचरा प्रबंधन कंपनियां मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढ सकती हैं. रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना, सुरक्षित निपटान की व्यवस्था करना और उपभोक्ताओं को जागरूक करना ही ई-कचरे के राक्षस से लड़ने का रास्ता है. आइए मिलकर अपने और आने वाली पीढ़ी के लिए स्वस्थ भविष्य का निर्माण करें.

ई-कचरा: आधुनिक युग का गंभीर संकट पर निबंध

ई-कचरा, यानी पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उपकरणों का कचरा, आधुनिक युग की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। यह न केवल पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है। आधुनिक युग में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग हर घर में होता है। लेकिन इन उपकरणों के उपयोग से एक बड़ी समस्या भी पैदा हो गई है, जिसे ई-कचरा कहा जाता है।

ई-कचरा क्या है?

ई-कचरा, बिजली से चलने वाले उपकरणों को कबाड़ में बदलने से उत्पन्न होता है। इनमें लैपटॉप, मोबाइल फोन, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं।

ई-कचरा क्यों एक गंभीर समस्या है?

पर्यावरण प्रदूषण: ई-कचरा जहरीले रसायनों से भरा होता है, जैसे कि सीसा, पारा, और कैडमियम। जब यह कचरा खुले में फेंका जाता है, तो ये रसायन मिट्टी, पानी, और हवा को प्रदूषित करते हैं।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: ई-कचरे से निकलने वाले जहरीले रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। इनसे सांस लेने में तकलीफ, कैंसर, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

कच्चे माल की कमी: ई-कचरे में कई मूल्यवान धातुएं और खनिज होते हैं, जैसे कि सोना, चांदी, और तांबा। यदि इनका उचित तरीके से पुनर्चक्रण नहीं किया जाता है, तो इनकी कमी हो सकती है।

ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है?

ई-कचरे का उचित प्रबंधन: सरकार को ई-कचरे के संग्रह, निपटान, और पुनर्चक्रण के लिए उचित प्रणाली विकसित करनी चाहिए।

जागरूकता फैलाना: लोगों को ई-कचरे के खतरों और उचित प्रबंधन के बारे में जागरूक करना बहुत जरूरी है।

पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण: लोगों को पुराने उपकरणों को फेंकने के बजाय उनका पुन: उपयोग या पुनर्चक्रण करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

टिकाऊ उत्पादों का निर्माण: उत्पादकों को टिकाऊ और लंबे समय तक चलने वाले उत्पादों का निर्माण करना चाहिए।

निष्कर्ष:

ई-कचरा एक गंभीर समस्या है, जिससे निपटने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। सरकार, उद्योग, और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा ताकि ई-कचरे को कम किया जा सके और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बचाया जा सके।

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essay on e kachra in hindi

ई-कचरा : स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को खतरा (E-Waste : The threat to health and environment)

essay on e kachra in hindi

पर्यावरण को लेकर अभी हमारे देश में पूरी तरह जागरूकता नहीं आई है। प्रदूषण जैसे अहम मुद्दे विकास के नाम पर पीछे छूट गए हैं। ऐसे में ई- कचरे (इलेक्ट्रॉनिक) के बारे में देश में बिलकुल भी जानकारी नहीं है न ही इस दिशा में कोई कदम उठते नजर आ रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं। तकनीक में हो रहे लगातार बदलावों के कारण उपभोक्ता भी नए-नए इलेक्ट्रॉनिकक उत्पादों से घर भर रहे हैं। ऐसे में पुराने उत्पादों को वह कबाड़ में बेच देता है और यहीं से आरंभ होती है ई-कचरे की समस्या।

क्या है ई-कचरा

ई-वेस्ट आई.टी. कंपनियों से निकलने वाला यह कबाड़ा है, जो तकनीक में आ रहे परिवर्तनों और स्टाइल के कारण निकलता है। जैसे पहले बड़े आकार के कम्प्यूटर, मॉनीटर आते थे, जिनका स्थान स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनीटरों ने ले लिया है। माउस, की-बोर्ड या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गए हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आ जाते हैं। पुरानी शैली के कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों तथा अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण भारत में हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है। विकसित देशों में अमेरिका की बात करें, तो वहाँ प्रत्येक घर में वर्ष भर में छोटे-मोटे 24 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं। इन पुराने उपकरणों का फिर कोई उपयोग नहीं होता। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में कितना इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता होगा। यह तथ्य भी देखने में आया कि केवल अमेरिका में ही 7 प्रतिशत लोग प्रतिवर्ष मोबाइल बदलते हैं और पुराना मोबाइल कचरे में डाल देते हैं।

ई -कचरे का बंढता आयात

विकासशील देशों को सर्वाधिक सुरक्षित डंपिंग ग्राउंड माने जाने के कारण भारत, चीन और पाकिस्तान सरीखे एशियाई देश ऐसे कचरे के बढ़ते आयात से चिंतित हैं। देश और दुनिया के पर्यावरण संगठन इसके संभावित खतरों पर एक दशक से भी ज्यादा समय से चिंता प्रकट कर रहे हैं। ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में चौदह साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून 1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों नें इसका आयात जारी रखा है। अमेरिका, जापान, चीन और ताइवान सरीखे देश तकनीकी उपकरणें में फैक्स, मोबाइल, फोटोकॉपियर, कम्प्यूटर, लैप-टॉप, टी.वी., बैरिया, कंडेसर, माइक्रो चिप्स, सी.डी. और फ्लॉपी आदि के कबाड़ होते ही इन्हें ये दक्षिण पूर्व एशिया के जिन कुछ देशों में ठिकाने लगाते हैं, उनमें भारत का नाम सबसे ऊपर है। अमेरिका के बारे में यह कहा जाता है कि वह अपने यहाँ का 80 प्रतिशत ई-कचरा चीन, मलेशिया, भारत, कीनिया तथा अन्य अफ्रीकी देशों में भेज देता है। भारत सहित कई अन्य देशों में हजारों की संख्या में महिला पुरुष व बच्चे इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निपटान में लगे हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि भी निकाली जाती हैं। इसे जलाने के दौरान जहरीला धुऑ निकलता है, जो कि काफी घातक होता है। भारत में दिल्ली व बंगलुरू ई-कचरे को निपटाने के प्रमुख केंद्र हैं। दुनिया के देशों में तेजी से बढ़ती इलेक्ट्रॉनिक क्रांति से एक तरफ जहां आम लोगों की उस पर निर्भरता। बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाले खतरे ने पूरे दक्षिण पूर्व एशिया खासकर पूरे भारत की चिंता बंढा दी है। पर्यावरण के खतरे और गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस कचरे का भारत प्रमुख उपभोक्ता है। मोबाइल फोन, लेपटॉप, फैक्स मशीन, फोटो कॉपियर, टेलीविजन और कबाड़ बन चुके कम्प्यूटरों के कचरे भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैं।

देश में पैदा होता ई–कचरा

सरकार के अनुसार 2004 में देश में ई-कचरे की मात्रा एक लाख 46 हजार 800 टन थी जो बढ़कर वर्ष 2012 तक आठ लाख टन होने का अनुमान है। ई -कचरा पैदा करने वाले 10 अग्रणी शहरों में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद शामिल हैं। जोधपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे सेंटर फॉर क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम के प्रमुख जांचकर्ता श्री घोष के अनुसार, जिस तेजी से बाजार में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों विशेष रूप से मोबाइल की धूम मची है, इससे वर्ष 2010 में इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़कर दो हजार टन होने की संभावना है। अभी भले ही यह आंकड़ा कम लगे, लेकिन यह चिंता का विषय जरूर है।

ई -कचरे के निपटान की समस्या

विकसित देश अपने यहाँ के इलेक्ट्रॉनिक कचरे की गरीब देशों को बेच रहे हैं। विकसित देश यह नहीं देख रहे कि गरीब देशों में ई-कचरे के निपटान के लिए नियम-कानून बने हैं या नहीं! इस कचरे से होने वाले नुकसान का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसमें 38 अलग प्रकार के रासायनिक तत्व शामिल होते हैं जिनसे काफी नुकसान भी हो सकता है। जैसे टीवी व पुराने कम्प्यूटर मॉनिटर में लगी सीआरटी (केथोंड रे ट्यूब) को रिसाइकल करना मुश्किल होता है। इस कचरे में लेड, मरक्युरी, केडमियम जैसे घातक तत्व भी होते हैं। दरअसल ई-कचरे का निपटान आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है। इसे जलाने से जहरीला धुंआ निकलता है जो काफी घातक होता है। विकासशील देश इनका इस्तेमाल तेजाब में डुबोकर या फिर उन्हें जलाकर उनमें से सोना-चांदी, प्लैटिनम और दूसरी धातुएं निकालने के लिए करते हैं। भारत में सूचना प्रोद्योगिकी का क्षेत्र बंगलौर है। यहां करीब 1700 आई.टी. कंपनियां काम कर रही है और उनसे हर साल 6000 हजार से 8000 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है। साफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एस.टी.पी.आई .) के डॉयरेक्टर जे. पार्थ सारथी कहते है कि सबसे बंडी जरूरत है भारी मात्रा में निकलने वाले ई-वेस्ट के सही निपटान की जब तक उसका व्यवस्थित ट्रीटमेंट नहीं किया जाता, वह पानी और हवा में जहर फैलता रहेगा। देश में निकलने वाला हजारों टन ई-वेस्ट (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) कबाड़ी ही खरीद रहे हैं। इनके पास इस तरह के कचरे को खरीदने की न अनुमति है और न ही वैज्ञानिक तरीके से निपटान की व्यवस्था। म.प्र. में खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन, हैंडलिंग एवं सीमापार संचलन) अधिनियम-2008 में ही इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रिक वस्तुओं से निकलने वाले कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था करीब दो वर्ष पहले से ही लागू कर दी गई थी, लेकिन म.प्र. प्रदूषण बोर्ड द्वारा लगातार इसकी अनदेखी की जा रही है। नियमों को जानते हुए भी बोर्ड ने आज तक शहर में किसी भी कबाड़ी के खिलाफ कार्रवाई तो दूर उसे नोटिस तक जारी नहीं किया। इंदौर में ही नहीं, संभवत: पूरे प्रदेश में कोई भी फर्म या व्यक्ति ई-वेस्ट निपटान या खरीदने के लिए अधिकृत नहीं है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण को खतरा

मोबाइलों के ई-कचरे से पर्यावरण को संकट

क्या है नियम

केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन संसाधन मंत्री जयराम रमेश के अनुसार ई-कचरे के निपटाने के लिए नियम बनाए गए हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ई-कचरे के समुचित प्रबंध एवं निपटाने के लिए 'खतरनाक कचरा प्रबंधन, रखरखाव एवं सीमापार यातायात नियम 2008' बनाए हैं। नियमों के अनुसार ई -कचरे के निपटारे में इकाइयों की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत होना जरूरी है। शहरों में कबाड़ी ही कम्प्यूटर, मोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को कबाड़ के रूप में खरीद रहे हैं। वे इस कचरे में से मतलब की उपयोगी वस्तुओं को निकालकर खतरनाक अपशिष्ट को खुले में फेंक देते हैं। इसमें से निकलने वाले हानिकारक रेडिएशन लोगों के जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके निपटान व नियंत्रण के लिए जिम्मेदार प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी दो साल बीतने के बाद भी लापरवाह बने हुए हैं। ई-कचरे को खरीदने के लिए नियमानुसार प्रदेश के प्रदूषण बोर्ड द्वारा अनुमति लेने के बाद केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड द्वारा पंजीयन कराना होता है। बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक किसी को भी इस तरह के कचरे को खरीदने के लिए अधिकृत नहीं किया है। इधर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने देश में तेजी से बढ़ रहे ई-वेस्ट निपटान के लिए प्रारूप-2010 जारी कर नए नियमों को अमल में लाने की तैयारी की जा रही है।

प्रस्तावित नियम

इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रिक वस्तुओं की उपयोग की उम्र निपटान की जिम्मेदारी उत्पादक संस्थान की होगी। उत्पादक के लिए ही नहीं, अपितु इस तरह के कचरे के पुर्नचक्रण व निपटान के लिए जिम्मेदार संस्थाओं पर भी सही तरीके से निपटान के लिए यह नियम लागू होगा। उपकरणों के खराब व अनुपयोगी होने पर उपयोगकर्ता की भी जिम्मेदारी होगी।

कड़े नियम जरूरी

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेसल कन्वेंशन के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरे संबंधी नियमों का पालन होता है। चीन ने अपने यहाँ ई-कचरे आयात करने पर रोक कुछ महीने पहले ही लगाई है। हांगकांग में बैटरियाँ व केथोड़ रे ट्यूब का आयात नहीं किया जा सकता। इसके अलावा दक्षिण कोरिया, जापान व ताईवान ने यह नियम बनाया है कि जो भी कंपनियाँ इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाती हैं वे अपने वार्षिक उत्पादन का 75 प्रतिशत रिसाइकल करें। वहीं भारत की बात की जाए तो अभी ई-कचरे के निपटान व रिसाइकलिंग के लिए कोई प्रयास ही शुरू नहीं हुए। देश में तेजी से बढ़ रही कम्प्यूटर व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की संख्या से भी अब इस तरह के नियम-कायदे बनाना जरूरी हो गया है। सरकार और सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग को इस खतरे से निपटने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। तामिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि उसने सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियों को ई-कचरे के निस्तारण के लिए उचित तरीके अपनाए जाने की हिदायत दी है, लेकिन ज्यादातर कंपनियां इसका पालन नहीं कर रही है। इंडो-जर्मन स्विस ई-वेस्ट कंपनी के सहयोग से बंगलौर में काम कर रहे स्वैच्छिक संगठन ''ई-वेस्ट एजेंसी'' ने इलेक्ट्रॉनिक कचरे के सही निपटान के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय को भी पत्र लिखा है, कहा है कि इसके संबंध में कानूनी प्रावधान किया जाना चाहिए।

essay on e kachra in hindi

E Waste क्या है और इसे कैसे Control करें?

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E Waste या फिर Electronic Waste और कुछ नहीं बल्कि उन्ही electrical goods का कहा जाता है जिन्हें की हम इस्तमाल करने के बाद Dump या discard कर देते हैं. जैसे जैसे हमारी जनसँख्या बढ़ रही है वैसे वैसे हमारी जरूरतें जिसके चलते E Waste की मात्रा भी बढ़ रही है।

हर साल करीब 50 million ton की e-waste पैदा हो रही है. जिन्हें की अगर सही तरीके से manage नहीं किया गया तब भविष्य में यह एक बड़ा खतरा बनकर उभर सकता है.

ख़ास इसीलिए आज मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों को E- Waste क्या है, इसके विषय में पूरी जानकारी दी जाये जिससे आप भी इस बड़े खतरे से पहले ही परिचित हों. तो फिर बिना देरी किये चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं की आखिर ये E Waste क्या होता है ?

ई कचरा क्या है (E-Waste in Hindi)

E waste का full form है Electronic wastes . ये उन electronic goods को refer जिन्हें हम कभी इस्तमाल किया करते थे अपने सुविधा के लिए लेकिन वो अब ख़राब हो जाने से उन्हें अब हम और इस्तमाल नहीं करते हैं।

प्रतिवर्ष करीब 50 million ton का e-wastes पूरी दुनिया में पैदा होता है. यदि ठीक तरीके से उनका disposal या recycle नहीं हुआ तब ये भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है. चूँकि technology में काफी advancement हो रही है इसलिए पुरानी devices नए के आने से obsolete हो जाते हैं।

E Waste Kya Hai Hindi

E-waste हमारे किसी भी electrical या electronic सामान जैसे की : computers , TVs, monitors, cell phones, PDAs, VCRs, CD players, fax machines, printers, इत्यादि से बनते हैं।

प्राय electronics अगर उन्हें सही तरीके से disposed नहीं किया गया तब वो बहुत से harmful materials जैसे की beryllium, cadmium, mercury और lead जैसे produce करते हैं. ये materials खुद decompose तो नहीं होते हैं बल्कि ये हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरते हैं. इसलिए इनका सही और efficient रूप से recycle करना बहुत ही जरुरी है।

ई-कचरा के मुख्य स्रोत क्या हैं

वैसे तो E Waste के बहुत सारे स्रोत हैं लेकिन हमारी समझ के लिए उन्हें मुख्य रूप से 3 categories में classify किया जाता है. जो की कुछ इसप्रकार हैं : –

1. White Goods 2. Brown Goods 3. Grey Goods

White Goods : इसके अंतर्गत घर में स्तिथ household materials जैसे की air conditioners, washing machines और air conditioners आते हैं।

Brown Goods : वहीँ इसके अंतर्गत televisions, Cameras, इत्यदि आते हैं।

Grey Goods : इसके अंतर्गत computers, scanners, printers, mobiles phones इत्यदि आते हैं।

E-Waste Generation के मुख्य कारण क्या हैं

बढती आबादी जिसके कारण बढती जरूरतें एक बहुत बड़ा कारण है E Waste के पैदा होने का. इसके अलावा कुछ ऐसे और भी कारण हैं जो की मिलकर इसे एक बहुत बड़ा खतरा बना रहे हैं. वो कहते हैं न की किसी भी चीज़ का अत्यधिक होना अपने आप में एक disaster होता है. तो चलिए ऐसे ही कुछ मुख्य कारणों के ऊपर चलिए गौर करते हैं –

E Waste Kya Hota Hai

1. Development :

अगर हम अभी की बात करें तब, तब ये estimate किया जा सकता है की इस दुनिया में करीब 1 billion से भी ज्यादा personal computers मेह्जुद हैं. वहीँ developed countries में इनकी average life span केवल 2 years की ही होती है।

केवल United States (अमरीका) में ही करीब 300 million से भी ज्यादा computers ऐसे ही पड़े हुए हैं. केवल developed countries ही नहीं अभी तो developing countries में भी इस technology का काफी sales हुआ है जिसके चलते इनके graph में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो की आगे चलकर wastage का रूप ले रही है. सूत्रों से ये पता चला है की computers की बिक्री और internet का usage करीब करीब 400% से भी ज्यादा बढ़ चूका है developing countries में।

इस अचानक हुए बढ़ोतरी से इनके द्वारा पैदा होने वाले e waste की भी बढ़ोतरी हुई है. इससे एक बात तो साफ़ नज़र आ रही है की जिस हिसाब से ये Computer industry development के नाम पर इतनी ज्यादा बढ़ रही है ऐसे में अगर इसके e waste के ऊपर अगर सोचा नहीं गया तब ये भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है।

2.  Technology :

अब ये तो modern technology का समय है जिसके चलते technology is lightning fast speed से बढ़ रही है. इस नयी technology के चलते नए products और appliances market में आ रहे हैं. जिससे की लोग अब और पुराने चीज़ों को ख़राब न हुए होते हुए भी इस्तमाल नहीं करना चाहते हैं।

इन सबके पीछे जिनका हाथ है वो हैं बड़े बड़े MNC’s (Multinational corporations). अब से MNC’s इतने ज्यादा powerful हो गए हैं की वो किसी देश के पुरे market system को भी बदल सकने की capacity रखते हैं. ये MNC’s ही हैं जो की हमेशा लोगों को बेहतर technology प्रदान करते हैं।

अभी Middle Class families के पास अच्छा पैसा हो जाने से वो हमेशा नयी proucts के पीछे पड़े हुए हैं जिससे companies हमेशा उनकी quality को बढ़ा रहे हैं जिससे उनकी ज्यादा बिक्री हो. ऐसे में अगर इसके e-waste in hindi के ऊपर अगर सोचा नहीं गया तब ये भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है।

3.  Human Mentality :

ये Common people (आम आदमी middle class) को ज्यादा money power प्रदान कर रहा है जिसके चलते वो ज्यादा चीज़ें खरीदने के लिए काबिलियत प्रदान करता हैं. उदहारण के लिए computer के बिक्री में बढ़ोतरी होना, यदि उसे सही तरीके से लम्बे समय तक इस्तमाल नहीं किया गया तब ये आख़िरकार E Waste ही बन जाता है।

इस money power के चलते लोग अभी अपने पुराने चीज़ों के बदले नयी चीज़ें इस्तमाल करना ज्यादा चाहते हैं और ये older materials बाद में e-waste बन जाते हैं।

4.  Population :

बढती population के चलते सभी चीज़ों की रफ़्तार काफी बढ़ गयी है. ये एक आसान तरीके unitary method से समझा जा सकता है. अगर 1 आदमी भी एक सामान खरीदता है और ऐसे में अगर सभी खरीदें तो क्या होगा।

इससे हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं की बढती आबे से e waste की मात्रा भी काफी बढ़ गयी है. बढती आबादी चीज़ों की reuse करने के बदले में हमेशा नयी चीज़ें खरीदने को ज्यादा चाहती है. ऐसे में अगर इसके e-waste in hindi के ऊपर अगर सोचा नहीं गया तब ये भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है।

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ऐसे में ये सभी कारण आपस में interlinked हैं एक दुसरे के साथ और मिलकर ये बहुत बड़ा environmental concern सृष्टी करते हैं e waste के रूप में।

ई कचरा का प्रभाव Environment के ऊपर

E-waste, या electronic waste, उन waste को कहा जाता है जो की कोई भी electronics पार्ट्स हो सकती हैं computers, mobile phones, से household electronics जैसे की food processors, pressure, cookers तक।

हमें अभी तक भी इन E-waste का improper disposal पर्यावरण में क्या होता है सही रूप से पता नहीं है लेकिन ये बात तो निस्चित है की इनका प्रवाह बड़े मात्रा में एक भयंकर रूप ले सकता है।

E-waste से ये environment में soil, air, और water components को ख़राब कर सकता है. तो चलिए जानते हैं की इनका आखिर क्या प्रवाह होता है हमारे पर्यावरण में।

Effects on air (हवा में)

एक बहुत ही common effect E-waste का होता है हवा में air pollution के द्वारा. हम सभी जानते हैं की इन electronic waste में ऐसे बहुत से चीज़ें आते हैं wires, blenders और बहुत कुछ जिन्हें की पाने के लिए लोग इस जला डालते हैं जिसके चलते वायु प्रदुसन का होना एक आम सी बात है।

Effects on water (पानी में)

जब इन electronics जिसमें की heavy metals जैसे की lead, barium, mercury, lithium (जो की mobile phone और computer batteries) होती हैं, अगर इन्हें सही रूप से dispose नहीं किया गया तब ये heavy metals मिटटी से मिलकर groundwater channels तक पहुँच सकती है जो की आगे चलकर surface में स्तिथ streams और small ponds में जाकर मिल जाती हैं. जो Local communities इन water sources के ऊपर निर्भर करते हैं उन्हें इन chemicals का direct प्रवाह होता है जिसके चलते उन्हें कई बीमारियाँ भी होती है. इस तरह से आगे चलकर ये जल प्रदुषण का रूप लेता है।

Effects on soil (मिटटी में)

अगर सही रूप से e waste को disposed नहीं किया गया तब इसमें स्तिथ toxic heavy metals और chemicals हमारे “soil-crop-food pathway” में घुस जाते हैं जिससे की ये heavy metals मनुष्यों के संस्पर्श में आते हैं. ये chemicals biodegradable नहीं होते है, इसका मतलब है की ये environment में लम्बे समय तक मेह्जुद रहते हैं जिसके चलते इसके risk of exposure बहुत मात्रा में बढ़ जाती है।

इन chemicals का मनुष्यों और दुसरे जीवित प्राणियों के ऊपर बहुत ख़राब दुश्प्रवाह होता है जिसके brain, heart, liver, kidney और skeletal system damage हो जाती है. इसके साथ बच्चे विकलांग जन्म होते हैं. यूँ कहे तो इससे Soil Pollution होती है जो की आगे चलकर बड़ा रूप ले सकती है।

E- Waste को कैसे Control करें

इसका कोई एक जवाब नहीं है बल्कि बहुत सारे तरीके हैं जिनसे की हम E-Waste को control कर सकते हैं . यहाँ पर मैंने कुछ important तरीकों के विषय में discuss किया है।

1.  आप local government के द्वारा बनाये गए laws और regulations को पालन कर सकते हैं जिसमें की हमें ethical और Waste के safe disposal के विषय में बताया गया होता है. चूँकि e waste हमें पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बन सकता है इसलिए बहुत सारे communities ने जरुरत में न आने वाले electronics को कुछ ख़ास drop-off location में ही डालने का प्रबंध किया है जिससे इन्हें सही रूप से control किया जा सके।

2.  Electronic Products के donation से, हम कोई भी चीज़ का reuse कर सकते हैं जिससे की pollution को बहुत हद तक रोका जा सकता है. ऐसा इसलिए क्यूंकि हो सकता है की जो चीज़ आप इस्तमाल न कर रहे हों वो किसी दुसरे के लिए बहुत जरुरी हो।

3.  वैसे E-waste recycler तो बहुत है लेकिन उनमें से सही recycler का पता लगा पाना थोडा मुस्किल है लेकिन अगर हम certified E-waste recycler का इस्तमाल करें तो इससे प्रदुषण बहुत ही कम होगा, और ये हमारे पर्यावरण के लिए Safe भी है।

अगर हम सभी मिलकर ये प्रण लें की हम E- Waste से अपने environment को ख़राब नहीं होने देंगे और इन Electronic वस्तुओं का judiciously इस्तमाल करेंगे क्यूंकि ये E waste न केवल हमारे पर्यावरण को दूषित करते हैं बल्कि हमें भी नुकशान पहुंचाते हैं।

Recycling के क्या benefits हैं

अगर Recycling के मदद से इन्हें अच्छे से Managed किया जाये तब, E-waste हमारे लिए raw materials का एक secondary source भी बन सकता है और इसके साथ इसके बहुत सारे दुसरे benefits भी हैं जैसे की : –

  • Economic Benefits इन recovered materials से हम अच्छा खासा Revenue generation कर सकते हैं.
  • Environmental Benefits इससे बहुत हद तक Natural resource का conservation भी हो सकता है और इसके साथ environmental pollution में काफी हद तक कमी भी लायी जा सकती है.
  • Social Benefits ऐसे recycling process के लिए human labour की भी जरुरत पड़ती है जिससे की Employment generation हो सकता है.

हमें Recycle क्यूँ करना चाहिए?

  • इस धरती के Natural resources पूरी तरह से limited हैं और इसलिए हमें ये ध्यान देना चाहिए की हम इसे preserve करें और इसका carefully इस्तमाल करें.
  • इससे हम Landfill होने से रोक सकते हैं.
  • इससे हम अपने धरती को वायु, जल और स्थल प्रदुषण से रोक सकते हैं.
  • इसके अलावा इससे Employment opportunity भी पैदा होती है.

E-Waste को recycle करने के उपाय

Electronic waste से ऐसे बहुत से खतरनाक chemicals पैदा होते हैं जैसे की lead, cadmium, beryllium, mercury इत्यादि . जब हम कोई gadgets और devices को improper तरीके से dispose करते हैं तब ये waste हमारे पर्यावरण को दूषित कर सकते हैं. ये तीनों जल, स्थल और वायु को प्रदूषित करते हैं जिससे की हमें और अन्य जीव जन्तुवों को बहुत सारे बीमारियाँ होती हैं।

कैसे e-waste को recycle किया जाये :

Consumer recycling : Consumer recycling के तहत इस्तमाल में नहीं आ रहे electronic चीज़ों को जरुरतमंदों को बेच दिया जाता है अथवा उसे दान में दे दिया जाता है. इसके अलावा ये नए products के बदले में manufacturers से ही exchange कर दिया जाता है. इसके अलावा हो सके तो उन्हें convenient recycler या refurbishing company को दे दिया जाता है।

Scrapping/recycling: E-waste recycling process के Scrapping के दोरान बहुत से steps को पालन किया जाता है : –

1. Sorting : जब e-waste recycling plant में आता है, तब इन wastes को manually shorted किया जाता है और batteries को भी निकाल दिया जाता है अगर कोई laptops, HDD , इसके साथ Memories को भी sort कर दिया जाता है बाकियों से।

2. Disassembly : Manually sorting करने के बाद, जो दूसरा step वो ये की manual dismantling किया जाता है जिसमें की serious labor की जरुरत होती है, चूँकि ये एक intensive process है. फिर e-waste items को अलग अलग कर दिया जाता है, जिसमें की उन्हें core materials और components के हिसाब से categorize कर दिया जाता है. ये dismantled items को दुसरे बार re-use भी किया जा सकता है. Metals से plastic को अलग कर दिया जाता है।

3. First size reduction process : इस process में उन pieces को shredding किया जाता है जिसे की सही रूप से dismantled नहीं किया जा सके. इसका मतलब है की उन pieces को 2 inch diameter के आकर में काट दिया जाता है. इससे e waste एक समान रूप में हो जाये।

4. Second size reduction process : इस process में उन pieces को और एक बार छोटे छोटे टुकड़ों में बाँट दिया जाता है और यदि कोई dust वहां से निकले तो उसे ऐसे जगह में discard किया जाता है जिससे की पर्यावरण को कोई हानी न हो।

5. Over-band Magnet : इस process के दोरान एक over-band magnet के इस्तमाल से सभी magnetic materials को दुसरे e-waste debris से अलग कर दिया जाता है।

6. Non-metallic and metallic components separation : इस process के दोरान सभी metals और non-metallic components को दुसरे e-waste debris से अलग कर दिया जाता है.. यहाँ metals को raw materials के हिसाब से बेच दिया जाता है या उसे फिर से दुसरे products बनाने के लिए फिर से इस्तमाल किया जाता है।

7. Water Separation : ये आखिरी step है, जिसमें plastic components को पानी के मदद से glass से अलग कर दिया जाता है. एक बार सभी materials अलग कर दिया जाने के बाद उन raw materials को re-use या resold कर दिया जाता है।

अब इन recycled components जैसे की glass (from monitors, phone screens, TV screens etc.), plastic, metal, को आसानी से reuse किया जाता है।

जो भी plastic components retrieve किया जाता है उन्हें recyclers में भेज दिया जाता है जो की उन्हें दुसरे सामान जैसे की fence posts, plastic sleepers, plastic trays, vineyard stakes, equipment holders, plastic chairs, और खिलोने बनाने के लिए इस्तमाल करते हैं।

Metal जो भी retrieve किया जाता है जैसे की copper और steel, उन्हें recyclers में भेजा जाता है नए metal products बनाने के लिए।

E waste management tips क्या हैं :

  • कभी भी ख़राब हो गए cell phones, dumped systems को land fills में न डालें. बल्कि उन्हें ऐसे organizations को भेज दें जहाँ की recycling किया जा रहा हो.
  • Electronic goods उन दुकानदारों से ही खरीदें जो की उसे ख़राब हो जाने पर recycle करने के लिए वापिस ले जाएँ.
  • अपने hardware equipments का life time बराबर देखते रहें जिससे की e waste को काफी हद तक कम किया जा सके.
  • बड़े Industries को recyclers खरीदना चाहिए जिसे की वो लम्बे समय तक इस्तमाल कर सकें.
  • हमेशा green engineering को support करें.
  • Citizens हमेशा recycled products को इस्तमाल करने के तरफ mood बनाएं.

Industries में Effective Waste minimization कैसे करें :

यहाँ पर में कुछ ऐसे process की बात करूँगा जिससे की बेहतर तरीके से Waste minimization किया जा सके।

  • बेहतर inventory management करना
  • Production-process में modification लाना
  • अपने volume की reduction करना
  • Recovery और reuse करना.

भारत में Electronic Waste

भारत अब पांचवां सबसे बड़ा E-Waste पैदा करने वाला राष्ट्र बन चूका है पूरी दुनिया में. केवल Computer devices से ही लगभग 70% के करीब e-waste निकलती है, वहीँ telecom sector से 12%, medical equipment से 8%, और electric equipment से 7% सालाना निकलती है. वहीँ Government, public sector companies, और private sector companies सभी मिलाकर करीब 75% से भी ज्यादा electronic waste पैदा करती हैं वहीँ individual household से केवल 16% ही निकलती हैं।

वहीँ अगर हूँ सहर की list तैयार करें तब इसमें Mumbai सबसे आगे हैं और उसके पीछे पीछे है New Delhi, Bangalore और Chennai. State-wise Maharashtra सबसे आगे स्तिथ है और उसके पीछे है Tamil Nadu and Uttar Pradesh. इन Electronic waste में सबसे ज्यादा Lead पाया जाता है जो की है 40% और इसमें 70% से भी ज्यादा heavy metals पैदा होती है. इन pollutants से groundwater contamination होता है, air pollution और soil acidification भी होता है।

E-Parisaraa क्या है

E-Parisaraa Pvt. Ltd, भारत का सबसे पहला Government authorized electronic waste recycler है जिसने की अपना operations September 2005 से शुरू किया है, और जो की इन e waste के handling, recycling and reusing का ख़ास ध्यान रखते हैं और वो भी eco friendly तरीके में. इसका मुख्य उद्देश्य है की वो कैसे E Waste को सही रूप से dispose और recycle करे।

इसके साथ E-Parisaraa का एक और objective भी है की वो कैसे एक ऐसा opportunity तैयार करें जिससे की Waste को valualble raw materials में तब्दील किया जा सके जिसे socially और industrially beneficial raw materials जैसे की valuable metals, plastics और glass के रूप में इस्तमाल किया जा सके. इसमें ऐसी environmental friendly technologies का इस्तमाल किया जाये जो की Indian Conditions को favourable हो।

आज आपने क्या सीखा

मुझे पूर्ण आशा है की मैंने आप लोगों को ई कचरा क्या है ? के बारे में पूरी जानकारी दी और में आशा करता हूँ आप लोगों को E Waste क्या है के बारे में समझ आ गया होगा. मेरा आप सभी पाठकों से गुजारिस है की आप लोग भी इस जानकारी को अपने आस-पड़ोस, रिश्तेदारों, अपने मित्रों में Share करें, जिससे की हमारे बिच जागरूकता होगी और इससे सबको बहुत लाभ होगा. मुझे आप लोगों की सहयोग की आवश्यकता है जिससे मैं और भी नयी जानकारी आप लोगों तक पहुंचा सकूँ।

मेरा हमेशा से यही कोशिश रहा है की मैं हमेशा अपने readers या पाठकों का हर तरफ से हेल्प करूँ, यदि आप लोगों को किसी भी तरह की कोई भी doubt है तो आप मुझे बेझिजक पूछ सकते हैं. मैं जरुर उन Doubts का हल निकलने की कोशिश करूँगा.

आपको यह लेख E Waste क्या है? कैसा लगा हमें comment लिखकर जरूर बताएं ताकि हमें भी आपके विचारों से कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिले. मेरे पोस्ट के प्रति अपनी प्रसन्नता और उत्त्सुकता को दर्शाने के लिए कृपया इस पोस्ट को Social Networks जैसे कि Facebook, Twitter इत्यादि पर share कीजिये।

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Comments (26).

Very useful information for us…pls. यह बताईये की हम इसको as a business opportunity ले सकते है क्या और अगर हां तो इसका क्या proces होगा?

Thankyou you and great post

Nice article.

Sir,prnam apne bahot badhiya samjaya apka bahot bahot thanywad muje form no.02 ko kese fill kare uski jankari chahiye thi

I understood prespective on E waste. Thank you. I like to prepre a project , but i think that how will we get waste from community. E waste is in every home and their farms. So can we collect.

Very nice, well explained

Great article, can you write me a small note in easy language to warn small children about e- waste ?

I want to know more about e waste

Hume y pura project lagana h …pls apka koi contact no. Dijeye….jisse apse contact ho sake

Aap sahi adhikari se sampark kar sakte hain. Hum kewal information pradan karte hain.

Thanks sir good information hai.

aapne acha samjhaya hai sir shukriya aapka

Great post Thank you so much

Thanks Afreen ji.

E waste Ka electronic license kaise bna skte h plz tell me.. Sir

bahut hi achha post hai aapne bahut achhe tarike se likha hai

Sir ji Bhut acha likh ahai aapne

Thanks Prabhanjan Sir E Waste ke bare me aapne bahot achhi jankari di

Thanks Ravindra ji, aap logon ke support se hi hum aap logon tak achhi jankari pradan kar pate hain. Bas aise hi support karte rahen.

e waste ke bare me bahut badhiya se bataya hai apne humein e waste ke bare me jagruk hone ki bahut jrurt hai isme is tarah ke blog kafi help kar sakte hai

Thanks Ankur ji.

E Waste ke bare me aapke kafi achhe tarike se samjhaya i am sure log is bare me sochenge

Thanks Manjeet ji.

Great think about the E-waste. We have to control it otherwise we must be side-effected with it and it will be so much dangerous for us. Thank You and great post

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ई-वेस्ट क्या है? कारण और प्रभाव - (What Is E-Waste In Hindi)

ई-वेस्ट क्या है? कारण और प्रभाव – (What Is Electronic Waste In Hindi)

What Is E-Waste In Hindi: ई वेस्ट या इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट और कुछ नहीं बल्कि वह इलेक्ट्रिकल गुड्स (चीज़ें | सामान) है जिसे हम इस्तेमाल करने के बाद फेंक देते हैं। जैसे-जैसे हमारी आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे हमारी जरूरतें भी बढ़ रही हैं, जिससे ई-वेस्ट की मात्रा भी बढ़ रही है।

हर साल करीब 50 मिलियन टन ई-कचरा पैदा हो रहा है। जिसे अगर सही तरीके से मैनेज नहीं किया गया तो यह भविष्य में एक बड़े खतरे के रूप में सामने आ सकता है।

इसलिए आज आप सभी को ई वेस्ट क्या है और इसे कण्ट्रोल कैसे करे। इसकी पूरी जानकारी देने जा रहे है। तो चलिए इस लेख को शुरू करते है –

ई-वेस्ट का फुल फॉर्म क्या है? (E-Waste Full Form In Hindi)

ई-वेस्ट का फुल फॉर्म इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट है।

ई-वेस्ट को हिंदी में क्या कहते है?

ई-वेस्ट को हिंदी में ई-कचरा कहा जाता है।

ई-कचरा क्या है? (E-Waste Kya Hai In Hindi)

ई-वेस्ट का फुल फॉर्म इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट होता है। ये उन इलेक्ट्रॉनिक गुड्स को संदर्भित करते हैं जिनका उपयोग हम कभी अपनी सुविधा के लिए करते थे लेकिन अब हम उनके खराब होने के कारण उनका उपयोग नहीं करते हैं।

पूरी दुनिया में हर साल करीब 50 मिलियन टन ई-कचरा पैदा होता है। यदि इनका निस्तारण या पुनर्चक्रण (रीसायकल) ठीक से नहीं किया गया तो यह भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है। चूंकि प्रौद्योगिकी में बहुत प्रगति हुई है, पुराने उपकरण नए के आगमन के साथ अप्रचलित हो जाते हैं।

ई-कचरा हमारे किसी भी इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक आइटम जैसे – कंप्यूटर, टीवी, मॉनिटर, सेल फोन, पीडीए, वीसीआर, सीडी प्लेयर, फैक्स मशीन, प्रिंटर आदि से बनता है।

यदि इनका ठीक से निपटान नहीं किया जाता है, तो वे कई हानिकारक मटेरियल जैसे बेरिलियम, कैडमियम, पारा और सीसा का उत्पादन करते हैं। ये मैटेरियल्स स्वयं विघटित नहीं होते है बल्कि हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभरते हैं। इसलिए इनका ठीक से और कुशलता से रीसायकल करना बहुत महत्वपूर्ण है।

ई-कचरे के मुख्य स्रोत (Sources Of E-Waste In Hindi)

वैसे तो ई-वेस्ट के कई स्रोत हैं लेकिन उन्हें मुख्य रूप से 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं –

  • ब्राउन गुड्स

वाइट गुड्स (White Goods) – इसके तहत घर में मौजूद हाउसहोल्ड मैटेरियल्स जैसे कि – वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर जैसी घरेलू सामग्री शामिल है।

ब्राउन गुड्स (Brown Goods) – ब्राउन गुड्स के अंतर्गत टीवी, कैमरा आदि आते हैं।

ग्रे गुड्स (Grey Goods) – ग्रे गुड्स में कंप्यूटर, स्कैनर, प्रिंटर, मोबाइल फोन आदि शामिल हैं।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा (Electronic Waste In India In Hindi)

भारत अब पूरी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा पैदा करने वाला देश बन गया है। लगभग 70% ई-कचरा केवल कंप्यूटर उपकरणों से उत्पन्न होता है, जबकि 12% दूरसंचार क्षेत्र से, 8% चिकित्सा उपकरण से और 7% सालाना बिजली के उपकरणों से उत्पन्न होता है। जबकि सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां और निजी क्षेत्र की कंपनियां मिलकर 75% से अधिक इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न करती हैं, केवल 16% व्यक्तिगत घर से निकलता है।

वहीं अगर शहरों की लिस्ट बनाए तो मुंबई सबसे आगे है उसके बाद नई दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई है। राज्यवार महाराष्ट्र सबसे आगे है, उसके बाद तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं। इन इलेक्ट्रॉनिक कचरे में सबसे अधिक सीसा पाया जाता है, जो कि 40% है और इसमें 70% से अधिक भारी धातुओं का उत्पादन होता है। ये प्रदूषक भूजल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और मिट्टी के अम्लीकरण का कारण बनते हैं।

ई-वेस्ट के मुख्य कारण (Main Reasons For E-Waste In Hindi)

बढ़ती जनसंख्या जिसके कारण बढ़ती जरूरतें ई-कचरे के उत्पन्न होने का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा और भी कुछ कारण हैं जो मिलकर इसे एक बड़ा खतरा बना रहे हैं। तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ मुख्य कारणों के बारे में-

विकास (Development)

अगर अभी की बात करें तो इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस दुनिया में 1 अरब से भी ज्यादा पर्सनल कंप्यूटर हैं। जबकि विकसित देशों में इनका औसत जीवन काल केवल 2 वर्ष ही होता है। केवल युनाइटेड स्टेट्स (USA) में ही ऐसे 300 मिलियन से अधिक कंप्यूटर पड़े हैं। विकसित देशों में ही नहीं, विकासशील देशों में भी इस तकनीक की काफी बिक्री हुई है, जिससे उनके ग्राफ में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो बाद में अपव्यय का रूप ले रही है।

सूत्रों से पता चला है कि विकासशील देशों में कंप्यूटर की बिक्री और इंटरनेट के उपयोग में 400% से अधिक की वृद्धि हुई है। इस अचानक वृद्धि से उनके द्वारा उत्पन्न ई-कचरा भी बढ़ गया है। इससे एक बात साफ नजर आ रही है कि जिस हिसाब से यह कंप्यूटर उद्योग विकास के नाम पर इतना आगे बढ़ रहा है। ऐसे में अगर इसके ई-कचरे के बारे में नहीं सोचा गया तो यह भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है.

प्रौद्योगिकी (Technology)

अब आधुनिक तकनीक का जमाना है। नई तकनीक के कारण बाजार में नए उत्पाद और उपकरण आ रहे हैं। और लोग पुरानी चीजों का उपयोग ख़राब न होते हुए भी नहीं करना चाहते हैं।

इन सबके पीछे जिन लोगों का हाथ है, वे बड़ी MNC’s (बहुराष्ट्रीय निगम) हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां इतनी शक्तिशाली हो गई हैं कि उनमें देश की संपूर्ण बाजार व्यवस्था को बदलने की क्षमता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही हैं जो हमेशा लोगों को बेहतर तकनीक प्रदान करती हैं।

मध्यम वर्ग के परिवार हमेशा नई परियोजनाओं के पीछे होते हैं क्योंकि उनके पास अच्छा पैसा होता है। जिससे कंपनियां हमेशा अपनी गुणवत्ता बढ़ा रही हैं ताकि वे और अधिक बेच सकें। ऐसे में अगर इसके ई-कचरे के बारे में नहीं सोचा गया तो यह भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है।

जनसंख्या (Population)

बढ़ती आबादी के कारण हर चीज की रफ्तार बहुत बढ़ गई है। इसे एकात्मक विधि से आसान तरीके से समझा जा सकता है। अगर 1 व्यक्ति एक वस्तु भी खरीदता है तो क्या होगा यदि हर कोई इसे ख़रीदे।

इससे हम यह कह सकते हैं कि जनसंख्या बढ़ने से ई-कचरे की मात्रा भी काफी बढ़ गई है। बढ़ती आबादी हमेशा चीजों का पुन: उपयोग करने के बजाय नई चीजें खरीदना चाहती है। ऐसे में अगर ई-कचरे के बारे में नहीं सोचा गया तो यह भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है।

पर्यावरण पर ई-कचरे का प्रभाव (Impact Of E-Waste In On The Environment Hindi)

ई-कचरा, या इलेक्ट्रॉनिक कचरा, अपशिष्ट (वेस्ट) कहलाता है जो कंप्यूटर, मोबाइल फोन से लेकर घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे खाद्य प्रोसेसर, प्रेशर, कुकर तक कोई भी इलेक्ट्रॉनिक्स सामान हो सकता है।

ई-कचरा पर्यावरण में मिट्टी, हवा और पानी के घटकों को नुकसान पहुंचा सकता है। तो आइए जानते हैं कि हमारे वातावरण में इनका प्रवाह क्या है –

हवा पर प्रभाव

ई-कचरे का एक बहुत ही सामान्य प्रभाव हवा में वायु प्रदूषण के कारण होता है। हम सभी जानते हैं कि इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे में कई ऐसी चीजें आती हैं जैसे तार, ब्लेंडर और भी बहुत कुछ, जिसे पाने के लिए लोग इसे जला देते हैं, जिसके कारण वायु प्रदूषण एक आम बात है।

पानी पर प्रभाव

जब लेड, बेरियम, मरकरी, लीथियम (जो मोबाइल फोन और कंप्यूटर बैटरी हैं) जैसी भारी धातुओं से युक्त इन इलेक्ट्रॉनिक्स का यदि ठीक से निपटान नहीं किया जाता है, तो ये भारी धातुएं मिट्टी के साथ मिल सकती हैं और ग्राउंडवाटर चैनलों तक पहुंच सकती हैं। जो बाद में सरिताओं और सतह पर स्थित छोटे तालाबों में मिल जाती है। इन जल स्रोतों पर निर्भर स्थानीय समुदायों में इन रसायनों का सीधा प्रवाह होता है, जिसके कारण वे कई बीमारियों को भी झेलते हैं। इस तरह यह बाद में जल प्रदूषण का रूप ले लेता है।

मिट्टी पर प्रभाव

यदि ई-कचरे का सही तरीके से निस्तारण नहीं किया जाता है तो उसमें मौजूद जहरीली भारी धातुएं और रसायन हमारे “मिट्टी-फसल-खाद्य मार्ग” में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे ये भारी धातुएं मनुष्यों के संपर्क में आ जाती हैं। ये रसायन बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं, इसका मतलब यह है कि ये लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं। जिससे इसके संपर्क में आने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है।

इन रसायनों का मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों पर बहुत बुरा प्रवाह होता है। जिससे मस्तिष्क, हृदय, यकृत, गुर्दे और कंकाल प्रणाली को नुकसान होता है। इससे बच्चे विकलांग पैदा होते हैं।

ई-कचरे को कैसे नियंत्रित करें (How To Control E-Waste In Hindi)

इसका कोई एक जवाब नहीं है, लेकिन ऐसे कई तरीके हैं जिनसे हम ई-वेस्ट को नियंत्रित कर सकते हैं।

आप स्थानीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों और विनियमों का पालन कर सकते हैं। जिसमें हमें कचरे के नैतिक और सुरक्षित निपटान के बारे में बताया गया है। चूंकि ई-कचरा पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है, इसलिए कई समुदायों ने अनावश्यक इलेक्ट्रॉनिक्स को कुछ विशेष ड्रॉप-ऑफ स्थान पर रखने की व्यवस्था की है ताकि उन्हें ठीक से नियंत्रित किया जा सके।

इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के दान से हम किसी भी चीज का पुन: उपयोग कर सकते हैं ताकि प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सके। ऐसा इसलिए है क्योंकि हो सकता है कि आप जो उपयोग नहीं कर रहे हैं वह किसी और के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो।

हालांकि ई-वेस्ट रिसाइकलर कई हैं लेकिन उनमें से सही रिसाइकलर ढूंढना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन अगर हम सर्टिफाइड ई-वेस्ट रिसाइकलर का इस्तेमाल करें तो इससे प्रदूषण कम होगा और यह हमारे पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।

यदि हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम ई-कचरे से अपने पर्यावरण को खराब नहीं होने देंगे और इन इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का विवेकपूर्ण उपयोग करेंगे। क्योंकि ये ई-कचरा न केवल हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करता है बल्कि हमें नुकसान भी पहुंचाता है।

ई-कचरे के निपटान के सर्वोत्तम तरीके

जरूरतमंदों को दे

हमारे देश में कई एनजीओ हैं जो आपके पुराने कंप्यूटर या गैजेट्स को उन लोगों तक ले जाते हैं जो उन्हें वहन नहीं कर सकते। आपको उनकी वेबसाइट पर जाना है और उन्हें अपने पास उपलब्ध चीजों के बारे में बताना है और उन्हें कलेक्ट करने के लिए कहना है। वह खुद आकर आपसे पुराना कंप्यूटर ले जाएगा। ऐसी ही एक सेवा है DonateYourPC.in। वे आपका पुराना कंप्यूटर लेकर एनजीओ को भेज देते हैं। आप प्रथम, यूनाइटेड वे ऑफ मुंबई, चाइल्डलाइन इंडिया नामक एनजीओ की साइट पर जाकर अपना पुराना कंप्यूटर और संबंधित सामान दान कर सकते हैं।

कंपनियों को भेजे वापस

पूरी दुनिया की तरह देश में भी कई कंपनियां हैं जो अपनी कंपनी के ई-कचरे को वापस करने का मौका देती हैं ताकि उन्हें इस तरह खत्म किया जा सके कि पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। ये कंपनियां हैं – एचसीएल, विप्रो, नोकिया, एसर, मोटोरोला, एलजी, डेल, लेनोवो और जेनिथ आदि। ई-कचरे की वापसी की नीति को उनकी वेबसाइट पर जाकर उनके हेल्पलाइन नंबरों से जाना जा सकता है। कुछ कंपनियां इसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाती हैं तो कुछ डिलीवरी सेंटर पर जमा कराने को कहती हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश भर में हर राज्य में ऐसी एजेंसियों को सुरक्षित तरीके से ई-कचरे के निपटान के लिए अधिकृत किया है। पूरी सूची www.cpcb.nic.in/e_Waste.php पर देखी जा सकती है।

यथासंभव लंबे समय तक उपयोग करें

जहां तक हो सके आपको अपने पुराने मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि का इस्तेमाल करना चाहिए। वही, जब यह उपयोग करने योग्य नहीं रह जाता है या आपको लगता है कि यह अब ई-कचरा है, तो ऐसे में आप इसे कंपनियों को वापस भी कर सकते हैं। पर्यावरण को ई-कचरे से बचाने के लिए कई कंपनियां ई-कचरे को वापस ले लेती हैं।

रीसाइक्लिंग के लाभ | (Benefits Of Recycling In Hindi)

यदि रीसाइक्लिंग की मदद से इनका अच्छी तरह से प्रबंधन किया जाए तो ई-कचरा हमारे लिए कच्चे माल का द्वितीयक स्रोत भी बन सकता है और इसके साथ ही इसके कई अन्य लाभ भी हैं जैसे –

  • हम इन रिकवर्ड सामग्री से बहुत अधिक राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं।
  • इससे प्राकृतिक संसाधनों का काफी हद तक संरक्षण भी हो सकता है और इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • ऐसी रीसाइक्लिंग प्रोसेस के लिए भी मानव श्रम की आवश्यकता होती है, जिससे रोजगार सृजन हो सकता है।

रीसाइक्लिंग क्यों करना चाहिए?

  • इस धरती के प्राकृतिक संसाधन पूरी तरह से सीमित हैं और इसलिए हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम इसका संरक्षण करें और सावधानी से इसका इस्तेमाल करें।
  • इससे हम लैंडफिल को रोक सकते हैं।
  • इससे हम अपनी पृथ्वी को वायु, जल और भूमि प्रदूषण से बचा सकते हैं।
  • इसके अलावा इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं।

ई-वेस्ट मैनेजमेंट टिप्स (E-Waste Management Tips In Hindi)

  • खराब सेल फोन, डंप सिस्टम को कभी भी लैंडफिल में न रखें। बल्कि उन्हें ऐसे संगठनों में भेजें जहां रीसाइक्लिंग किया जा रहा हो।
  • इलेक्ट्रॉनिक सामान उन्हीं दुकानदारों से खरीदें जो खराब होने पर उन्हें रिसाइकल करने के लिए वापस ले जाते हैं।
  • अपने हार्डवेयर उपकरणों के जीवनकाल को देखते रहें ताकि ई-कचरे को काफी हद तक कम किया जा सके।
  • बड़े उद्योगों को ऐसे रिसाइकलर खरीदने चाहिए। जिनका वे लंबे समय तक इस्तेमाल कर सकें।
  • हमेशा ग्रीन इंजीनियरिंग का समर्थन करें।
  • नागरिकों को हमेशा रीसाइकल्ड उत्पादों का उपयोग करने के लिए मूड बनाना चाहिए।

मोबाइल फोन और अन्य गैजेट्स को कैसे किया जाता है रिसाइकिल

एजो क्‍लीनटेक की रिपोर्ट के मुताबिक औसतन 2 साल तक एक मोबाइल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद जब यह खराब हो जाता है तो ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल करना बंद कर देते हैं या फेंक देते हैं। ऐसे कई संगठन हैं जो इसे फेंकने के बजाय रिसायकल में मदद करते हैं। रिसायकल का अर्थ है इन्‍हें समाप्त कर इससे ही अन्य उत्पाद बनाना। आइए अब समझते हैं कि गैजेट्स को रिसाइकिल कैसे किया जाता है –

किसी भी गैजेट के अलग-अलग हिस्सों का अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है। इसे मोबाइल के एक उदाहरण के रूप में समझा जा सकता है। जब भी किसी मोबाइल को रिसाइकिल किया जाता है तो उसके दो भाग होते हैं। पहली बैटरी और दूसरी मोबाइल। मोबाइल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर 1100 डिग्री सेंटीग्रेड पर गर्म किया जाता है। इसे पाउडर में बदलने के बाद इसे केमिकल के जरिए साफ किया जाता है। इसके बाद इसका इस्तेमाल अन्य मोल्डेबल चीजें बनाने में किया जाता है।

आइए अब समझते हैं कि बैटरी का क्या होता है –

कॉपर, कैडमियम और निकल जैसी धातुओं को बैटरी से अलग किया जाता है। इनका प्रयोग कई बार किया जाता है। जानकारों का कहना है कि रीसाइक्लिंग के लिए दिए गए 80 फीसदी गैजेट्स को दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है। ये गैजेट कुछ कम आय वाले देशों के निचले तबके के लोगों को मरम्मत कराकर दिए जाते हैं। कई कंपनियां एनजीओ के सहयोग से यह काम करती हैं।

पुराने गैजेट्स को फेंकने या हटाने के बजाय उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ऐसे कई ऐप हैं जो ऐसे गैजेट खरीदते हैं। आप उन्हें बेच सकते हैं। आप इसकी मरम्मत करवाकर किसी को दान कर सकते हैं। इसके अलावा मोबाइल कैमरा को वेबकैम या सिक्योरिटी कैमरा के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

ई-कचरा प्रबंधन नियम (E-Waste Management Rules In Hindi )

ई-कचरे की बढ़ती मात्रा को देखते हुए भारत सरकार ने अक्टूबर 2016 में ई-कचरा प्रबंधन नियम बनाया था। यह नियम सभी लोगों जैसे उत्पादक, उपभोक्ता, कचरा संग्रहणकर्ता आदि पर लागू होगा। निर्माता को कुछ नियमों का पालन करते हुए उत्पादन करना होगा। अगर वह इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे सजा भी होगी। इस नियम के तहत श्रमिकों को ई-कचरा निपटान के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। साथ ही उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी।

इसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाए जाएंगे। उन्हें रीसाइक्लिंग एजेंसियों की जांच करने का अधिकार दिया जाएगा कि वे नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं। इसके अलावा कई अन्य चीजों को ई-कचरा प्रबंधन नियम में शामिल किया गया है। यदि हम सभी भारतीय नागरिक इस नियम को अपनाते हैं तो शायद आने वाले कुछ वर्षों में हम निश्चित रूप से ई-कचरे का निपटान करेंगे।

ई-परिसारा क्या है? (What Is E-Parisaraa In Hindi)

E-Parisaraa Pvt. Ltd भारत का पहला सरकारी अधिकृत इलेक्ट्रॉनिक कचरा पुनर्चक्रणकर्ता (Recycler) है जिसने सितंबर 2005 से अपना संचालन शुरू किया। जो इन ई-कचरे के प्रबंधन, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग का विशेष ध्यान रखता है और वह भी पर्यावरण के अनुकूल तरीके से। इसका मुख्य उद्देश्य ई वेस्ट का सही तरीके से निपटान और पुनर्चक्रण करना है।

ई-वेस्ट क्या होता है? ई वेस्ट या इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट वह इलेक्ट्रिकल गुड्स है जिसे हम इस्तेमाल करने के बाद फेंक देते हैं।

ई वेस्ट खतरनाक क्यों है? ई वेस्ट खतरनाक इसलिए है क्योकि ये पृथ्वी और मानव शरीर को नुकसान पहुंचाते है।

ई-वेस्ट का पूरा नाम क्या है? ई-वेस्ट का पूरा नाम इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट है।

ई-वेस्ट को हिंदी में क्या कहते है? ई-वेस्ट को हिंदी में ई-कचरा कहते है।

ई कचरा को कौन सा कचरा कहते हैं? ई कचरा को इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट या ई-वेस्ट कहते हैं।

ई कचरा को इंग्लिश में क्या कहते है। ई कचरा को इंग्लिश में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट या ई-वेस्ट कहते हैं।

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कचरा प्रबंधन पर निबंध

essay on e kachra in hindi

By विकास सिंह

essay on waste management in hindi

अपशिष्ट प्रबंधन का अर्थ है कचरे को संभालने से लेकर उसे निपटान के लिए अपने अंतिम गंतव्य तक ले जाने तक की सभी गतिविधियों का प्रबंधन। मानव और पर्यावरण के स्वस्थ कामकाज के लिए अपशिष्ट प्रबंधन आवश्यक है। हम कचरे के निपटान की तुलना में तेज गति से कचरे का उत्पादन कर रहे हैं।

कई प्रकार के अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं जैसे ठोस, गैसीय और तरल। निर्मित कचरे के सभी प्रकार अपशिष्ट प्रबंधन की विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरते हैं। कुशल अपशिष्ट प्रबंधन हमें सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण की ओर ले जाएगा।

कचरा प्रबंधन पर निबंध, short essay on waste management in hindi (200 शब्द)

अपशिष्ट प्रबंधन अपशिष्ट उत्पादों, सीवेज और कचरे के संग्रहण, परिवहन, उपचार और त्याग की समग्र प्रक्रिया है। इसमें अन्य कानूनी, निगरानी, ​​रीसाइक्लिंग और गतिविधियों को विनियमित करना भी शामिल है।

अपशिष्ट के कई रूप होते हैं जैसे ठोस, गैस या तरल और प्रत्येक में निपटान और प्रबंधन की अलग-अलग प्रक्रिया होती है। अपशिष्ट प्रबंधन उद्योगों, घरेलू, वाणिज्यिक गतिविधियों या प्राकृतिक कचरे द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार के कचरे का प्रबंधन करता है। अपशिष्ट प्रबंधन का बड़ा खंड नगरपालिका के ठोस कचरे से संबंधित है, अर्थात् उद्योगों, आवास और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों द्वारा निर्मित अपशिष्ट।

अपशिष्ट प्रबंधन की सामान्य अवधारणाएं अपशिष्ट पदानुक्रम हैं, जिसमें तीन दृष्टिकोण शामिल हैं जो कम करना, पुन: उपयोग और रीसायकल हैं। दूसरा उत्पाद का जीवन चक्र है जिसमें 3 आर के बाद पदानुक्रम के डिजाइन, निर्माण, वितरण शामिल हैं। तीसरी अवधारणा संसाधन दक्षता है जो संसाधनों के कुशल उपयोग पर केंद्रित है। और चौथा कॉन्सेप्ट है प्रदूषण-भुगतान सिद्धांत जहां पर पोल्यूटर-पार्टी यानी कचरे को उत्पन्न करने वाले को पर्यावरण के कारण होने वाले प्रभाव के लिए भुगतान करना पड़ता है। हालाँकि, अपशिष्ट प्रबंधन विकासशील और विकसित देशों, शहरों और गांवों में किया जाता है।

अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन का जीवों के स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर उदासी के कई नकारात्मक प्रभाव हैं। वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण , खतरनाक बीमारियों का प्रसार, आदि। अपशिष्ट प्रबंधन पर्यावरण, स्वास्थ्य और प्रकृति की सुंदरता पर अपशिष्ट के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से किया जाता है।

कचरा प्रबंधन पर निबंध, essay on waste management in India (300 शब्द)

प्रस्तावना:.

कई अविकसित, विकासशील और विकसित देशों में ठोस कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या बन गया है। नगरपालिका के ठोस कचरे में वृद्धि के मुख्य कारण अति-दूषण, औद्योगीकरण, आर्थिक विकास और शहरीकरण हैं।

अपशिष्ट प्रबंधन एक वैश्विक मुद्दा है लेकिन इसके परिणाम विकासशील देशों में अधिक स्पष्ट हैं। भारत में, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली कई क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ तालमेल रखने में विफल रही है। नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन में अक्षमता सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और हमारी अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।

भारत में ठोस नगरपालिका अपशिष्ट को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक:

जनसंख्या:

जनसंख्या अधिक होना हमारे देश के प्रमुख मुद्दों का स्पष्ट कारण है। ठोस नगरपालिका कचरे में जनसंख्या के परिणाम में वृद्धि। उच्च आबादी बुनियादी संसाधनों की बढ़ती मांग की ओर जाती है जिससे अपशिष्ट उत्पादन होता है।

शहरीकरण:

बढ़ती जनसंख्या , ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में कमी और शहरी आर्थिक और सामाजिक विकास के लाभों का आनंद लेने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन शहरीकरण के कुछ अन्य कारण हैं। शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है। शहरी क्षेत्रों में औद्योगीकरण माल के उत्पादन की प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में अपशिष्ट का उत्पादन करता है और कचरे के उपयोग के बाद माल का निपटान करता है। कई शहरों में, भीड़भाड़ ने कचरे को प्रबंधित करने की नगरपालिका अधिकारियों की क्षमता को अभिभूत कर दिया है।

शानदार जीवन: 

भौतिकवादी धारणा और लक्जरी उत्पादों की आवश्यकता के कारण एक आरामदायक और शानदार जीवन जीने के लिए बहुत बढ़ गया है चाहे इसकी आवश्यकता हो या न हो। इसके परिणामस्वरूप अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है।

ई – कचरा:

जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है, नई तकनीक की मांग बढ़ती है। मोबाइल , टीवी , प्ले स्टेशन, रेफ्रिजरेटर आदि। परिणामस्वरूप पुराने गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कचरा हो जाते हैं।

निष्कर्ष:

सरकार को जागरूकता अभियान और विज्ञापन शुरू करने चाहिए ताकि लोगों को अतिरिक्त कचरे के दुष्प्रभावों के बारे में सूचित किया जा सके। कचरे के निपटान के लिए नई और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कचरे के अधिकतम पुन: उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

कचरा प्रबंधन पर निबंध, 400 शब्द:

अपशिष्ट प्रबंधन शब्द का अर्थ है कचरे के संग्रह से लेकर निपटान के अंतिम चरण तक का प्रबंधन। पूरी प्रक्रिया में कचरा प्रबंधन को सक्षम करने वाले कानूनी पहलुओं के साथ संग्रह, परिवहन, निपटान, रीसाइक्लिंग, निगरानी और विनियमन शामिल है। इसमें घर के कचरे, औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, कीचड़, स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट और व्यवसायीकरण के कारण अपशिष्ट से सभी प्रकार के अपशिष्ट शामिल हैं। विभिन्न प्रकार के कचरे के लिए अपशिष्ट प्रबंधन के तरीके अलग-अलग होते हैं।

अपशिष्ट प्रबंधन की विभिन्न अवधारणाएँ हैं और कुछ सामान्य अवधारणाएँ इस प्रकार हैं:

अपशिष्ट पदानुक्रम : 

अपशिष्ट प्रबंधन की श्रेणीबद्ध प्रक्रिया में कचरे को कम करना, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण शामिल है। अपशिष्ट पदानुक्रम में सबसे अधिक अनुकूल है, अर्थात् पुन: उपयोग और पुनरावृत्ति के बाद खपत और स्रोत में कमी से बचने के लिए। चलो नीचे विस्तार से अपशिष्ट पदानुक्रम के सभी तीन दृष्टिकोणों पर एक नज़र डालते हैं:

कम कचरा करना: सबसे पसंदीदा दृष्टिकोण अपशिष्ट बनाने के लिए नहीं है, अर्थात् माल और सेवाओं की खपत से बचने के लिए, पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का उपयोग करना और ऊर्जा की बचत करना। इसमें उत्पादन प्रक्रिया में जाने वाले इनपुट को कम करके, टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन, ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकी, हाइब्रिड परिवहन आदि के उपयोग से स्रोत में कमी भी शामिल है। इसमें ऊर्जा कुशल उत्पादन, पैकेजिंग में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग शामिल है। ।

पुन: उपयोग: अपशिष्ट को कम करने के लिए पुन: उपयोग एक और उपयोगी दृष्टिकोण है। इसमें पुन: उपयोग करने वाले पैकेजिंग सिस्टम शामिल हैं जो डिस्पोजेबल कचरे को कम करने में मदद कर सकते हैं। पुन: उपयोग में सेकंड हैंड उत्पादों का उपयोग करना भी शामिल है।

पुनर्चक्रण: इस प्रक्रिया में, उपयोग किए गए उत्पादों को कच्चे माल में पुनर्नवीनीकरण किया जाता है जिसका उपयोग नए उत्पादों के उत्पादन में किया जा सकता है। उत्पादों के पुनर्चक्रण में कच्चे माल मिलते हैं जो ऊर्जा कुशल, लागत प्रभावी और कम प्रदूषणकारी होते हैं। यह नए कच्चे माल की खपत से भी बचता है।

किसी उत्पाद का जीवन चक्र:

उत्पाद के जीवन चक्र में नीतिगत हस्तक्षेप शामिल है, उत्पाद की आवश्यकता पर पुनर्विचार करना, कचरे को कम करने और टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन को फिर से डिज़ाइन करना। उत्पाद के जीवन-चक्र का मुख्य उद्देश्य अनावश्यक कचरे से बचने के लिए संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है।

संसाधन क्षमता:  उत्पादन और खपत के मौजूदा पैटर्न के साथ आर्थिक विकास और विकास को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। हम वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। संसाधन दक्षता माल के उत्पादन और खपत से हमारे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव की कमी है।

उत्पादों के पुन: उपयोग से माल की पैकेजिंग और परिवहन में जुड़ी ऊर्जा का उपयोग कम करना। हम भोजन, ई-कचरा और पानी बर्बाद करके अपने संसाधनों को बर्बाद कर रहे हैं।

पोलटर सिद्धांत का पालन: प्रदूषक-भुगतान सिद्धांत में, प्रदूषक पार्टी यानी अपशिष्ट जनरेटर पर्यावरण के लिए प्रभाव के लिए भुगतान करता है।

ये अपशिष्ट प्रबंधन के सबसे सामान्य कारक हैं। हालांकि, अविकसित, विकासशील और विकसित देशों के अपशिष्ट प्रबंधन अभ्यास वर्तमान में एक समान नहीं हैं।

कचरा प्रबंधन पर निबंध, essay on waste management in hindi (500 शब्द)

अपशिष्ट प्रबंधन मानव, औद्योगिक और पर्यावरणीय कचरे से निपटने, प्रसंस्करण, परिवहन, भंडारण, रीसाइक्लिंग और निपटान की पूरी प्रक्रिया है। अपशिष्ट प्रबंधन एक वैश्विक घटना है लेकिन विकासशील देशों में इसके प्रभाव अधिक प्रमुख हैं।

ठोस कचरा प्रबंधन, जो एक बहुत बड़ा काम है, शहरीकरण, अतिवृष्टि, व्यावसायीकरण, सामाजिक और आर्थिक विकास आदि में वृद्धि के साथ और अधिक जटिल हो रहा है, संस्थागत नाजुकता, वित्तीय बाधाओं और अपशिष्ट प्रबंधन के प्रति सार्वजनिक रवैये ने इस मुद्दे को और भी बदतर बना दिया है।

अपशिष्ट प्रबंधन के कई तरीके हैं और कुछ सामान्य तरीके निम्न हैं:

लैंडफिल: लैंडफिल में कचरा और कचरा फेंकना कचरे के निपटान का सबसे आम तरीका है। इस प्रक्रिया में, कचरे के गंध और खतरे समाप्त हो जाते हैं। फिर कचरे को लैंडफिल साइटों पर दफन किया जाता है। लैंडफिल भी ग्लोबल वार्मिंग का कारण है जिसके कारण कई देश लैंडफिल के उपयोग पर पुनर्विचार कर रहे हैं।

भस्मीकरण: इस विधि में, नगरपालिका ठोस अपशिष्टों को अवशेषों, गर्मी, राख, भाप और गैसों में बदलने के लिए दफन किया जाता है। यह वास्तविक मात्रा के 30% तक ठोस अपशिष्ट की मात्रा को कम करता है।

पुनर्चक्रण: यह वह प्रक्रिया है जिसमें छूटी हुई वस्तुओं का पुन: उपयोग के लिए पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। अपशिष्ट पदार्थों को संसाधनों को निकालने या बिजली, गर्मी या ईंधन के रूप में ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।

खाद बनाना: यह एक जैव-क्षरण प्रक्रिया है जिसमें कार्बनिक अपशिष्ट यानी पौधों के अवशेष और रसोई के कचरे को पौधों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर भोजन में बदल दिया जाता है। खाद, जैविक-खेती के लिए प्रयोग की जाने वाली विधि है जो मिट्टी की उर्वरता को भी बेहतर बनाती है।

एनारोबिक पाचन: यह भी प्रक्रिया है जो जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से कार्बनिक पदार्थों को विघटित करती है। यह ऑक्सीजन और बैक्टीरिया मुक्त वातावरण का उपयोग डीकंपोज करने के लिए करता है। कंपोस्टिंग को रोगाणुओं के विकास में सहायता के लिए हवा की आवश्यकता होती है।

अपशिष्ट ऊर्जा के लिए: इस प्रक्रिया में, गैर-पुनर्चक्रण योग्य अपशिष्ट ऊर्जा स्रोतों जैसे गर्मी, ईंधन या बिजली में परिवर्तित हो जाता है। यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है क्योंकि गैर-पुनर्चक्रण योग्य कचरे का उपयोग बार-बार ऊर्जा बनाने के लिए किया जा सकता है।

अपशिष्ट न्यूनतमकरण: अपशिष्ट प्रबंधन का सबसे सरल तरीका कम अपशिष्ट बनाना है। अपशिष्ट निर्माण और रीसाइक्लिंग को कम करके और पुरानी सामग्रियों का पुन: उपयोग करके आपके और मेरे द्वारा अपशिष्ट में कमी की जा सकती है। पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का उपयोग करना और प्लास्टिक, कागज आदि का उपयोग कम करना महत्वपूर्ण है। सामुदायिक भागीदारी का कचरा प्रबंधन प्रणाली पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

गैसीकरण और पायरोलिसिस: इन दो तरीकों का उपयोग कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को ऑक्सीजन और उच्च तापमान की कम मात्रा में उजागर करने के लिए किया जाता है। पाइरोलिसिस की प्रक्रिया में किसी भी ऑक्सीजन का उपयोग नहीं किया जाता है और गैसीकरण की प्रक्रिया में ऑक्सीजन की बहुत कम मात्रा का उपयोग किया जाता है। गैसीकरण सबसे लाभप्रद प्रक्रिया है क्योंकि जलने की प्रक्रिया से ऊर्जा को पुनर्प्राप्त करने के लिए कोई वायु प्रदूषण पैदा नहीं होता है।

पर्यावरण संघों ने अपशिष्ट प्रबंधन से निपटने के लिए कई तरीके स्थापित किए हैं। रणनीतियाँ लंबी अवधि की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए नागरिक निकायों द्वारा डिज़ाइन की गई हैं। ठोस अपशिष्ट के उपचार और निपटान के लिए नई उन्नत तकनीकों का उपयोग भी शुरू किया गया है। सामान्य अपशिष्ट उपचार की अवधारणा को प्रोत्साहित किया जा रहा है और इसे बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि यह अपशिष्ट का उपयोग कच्चे माल या विनिर्माण प्रक्रियाओं में सह-ईंधन के रूप में करता है।

कचरा प्रबंधन पर निबंध, long essay on waste management in hindi (600 शब्द)

अपशिष्ट प्रबंधन या अपशिष्ट निपटान, इसके संग्रह से निपटान तक कचरे का प्रबंधन करने के लिए आवश्यक सभी गतिविधियों को शामिल करें। अन्य गतिविधियाँ अपशिष्ट और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं को एकत्र करना, परिवहन करना, संभालना, पर्यवेक्षण करना, विनियमित करना और त्यागना हैं। हम अपने पर्यावरण की कल्पना नहीं कर सकते हैं कि हमारे चारों ओर अपशिष्ट पदार्थ फैलते हैं और बीमारियां फैलती हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं का कुशलतापूर्वक प्रदर्शन किया और लगातार अत्यधिक लाभ उठा सकते हैं। अपशिष्ट प्रबंधन के विभिन्न पक्ष और विपक्ष हैं।

आइए अपशिष्ट प्रबंधन के कुछ पेशेवरों और विपक्षों पर एक नज़र डालें:

अपशिष्ट प्रबंधन के फायदे:

पर्यावरण को स्वच्छ रखता है: अपशिष्ट प्रबंधन की प्रक्रिया पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करती है, हालांकि हम सभी को लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपने परिवेश को स्वच्छ रखने में भाग लेने की आवश्यकता है। अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयां सार्वजनिक क्षेत्रों से कचरा और अपशिष्ट पदार्थों को इकट्ठा करने और लैंडफिल साइटों और इसके निपटान के लिए अन्य निपटान इकाइयों में परिवहन के लिए काम करती हैं। कचरे से निकलने वाली गंध और गैसों को निपटान से पहले खत्म कर दिया जाता है, इस प्रकार पूरी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप पर्यावरण को स्वच्छ रखा जाता है।

ऊर्जा को संरक्षित करता है: अपशिष्ट प्रबंधन की प्रक्रिया में रीसाइक्लिंग शामिल है। उत्पादों का पुनर्चक्रण नए उत्पादों और कच्चे माल के उत्पादन को कम करने में मदद करता है। रीसाइक्लिंग से ऊर्जा संरक्षण में भी मदद मिलती है क्योंकि रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया कम ऊर्जा का उपयोग करती है।

वायु प्रदूषण कम करें: अपशिष्ट प्रबंधन प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करता है। यह कचरे से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की तीव्रता को कम करता है।

रोजगार के अवसर: अपशिष्ट प्रबंधन के सभी वर्गों में बड़ी मात्रा में श्रमशक्ति की आवश्यकता है। निपटान के अंतिम चरण में संग्रह से लेकर अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्रों में रोजगार के कई अवसर हैं।

संसाधनों का सतत उपयोग: अपशिष्ट प्रबंधन की प्रक्रिया में ऊर्जा और संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करने की योजना है। अपशिष्ट प्रबंधन अवधारणा उत्पाद के जीवन-चक्र का उद्देश्य संसाधनों का कुशल उपयोग है।

स्वास्थ्य: अपशिष्ट के संपर्क में आना मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और कई बीमारियों का कारण बन सकता है। अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों में हमारे आसपास के लैंडफिल से कचरे को इकट्ठा करना और उन क्षेत्रों में परिवहन करना शामिल है जहां कचरे को सुरक्षित तरीके से निपटाया जा सकता है जिससे हमें कई स्वास्थ्य खतरों से बचाया जा सकता है।

अंतर-जनरेशनल इक्विटी: प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन अभ्यास निम्नलिखित पीढ़ियों को मजबूत अर्थव्यवस्था और स्वच्छ वातावरण प्रदान करेगा।

अपशिष्ट प्रबंधन के नुक्सान:

वित्त: उत्पन्न कचरे की मात्रा बहुत बड़ी मात्रा में है और इसलिए इसका प्रबंधन और समग्र प्रक्रिया को विभिन्न कार्यों की योजना और कार्यान्वयन की बहुत आवश्यकता है। दूसरे, विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के लिए बहुत सारी मानव शक्ति और नई तकनीकों की आवश्यकता होती है। पूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली और प्रभावी तरीके से कम करने,

पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग की प्रक्रिया के लिए बहुत अधिक धन और निवेश की आवश्यकता होती है।

श्रमिकों का स्वास्थ्य: अपशिष्ट प्रबंधन की प्रक्रिया में ऐसे अपशिष्ट शामिल हैं जो कई कीटों, कीटों, जीवाणुओं और रोगाणुओं आदि को आकर्षित करते हैं, जो किसी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। लैंडफिल बैक्टीरिया और कवक के विकास के लिए अत्यधिक संभावना है जो विभिन्न रोगों का कारण हो सकता है जो इसे शामिल श्रमिकों के लिए असुरक्षित जगह बनाते हैं।

हानिकारक गैसों को जलाने की प्रक्रिया में जारी किया जाता है जो व्यापक रूप से मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं। मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन के कारण साइटें दूषित हो सकती हैं।

अकुशल कचरा प्रबंधन: विकासशील देशों में अपशिष्ट प्रबंधन नाजुक अपशिष्ट संग्रह सेवाओं का अनुभव करता है और अकुशल रूप से प्रबंधित डंपसाइट्स का प्रबंधन करता है। अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाएं अविकसित, विकासशील और विकसित देशों में समान नहीं हैं। अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयां कचरे के उत्पादन की बढ़ती मात्रा के साथ तालमेल रखने में असमर्थ हैं। निष्कर्ष

बेकार को छोड़ने और पर्यावरण और दूसरों पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर विचार न करने के कारण गलत है। हम सभी प्रकृति का एक हिस्सा हैं और यह हमारा कर्तव्य है कि हम प्रकृति को कचरे के खतरनाक प्रभावों से बचाएं। चूंकि अपशिष्ट का प्रबंधन एक व्यापक प्रक्रिया है, जो आपके परिवेश को साफ रखने से शुरू होती है और बाकी को अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों द्वारा ध्यान रखा जाएगा।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Thursday 18 March 2021

ई-कचरा पर निबंध e-kachra par nibandh in hindi.

essay on e kachra in hindi

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ठोस कचरा प्रबंधन क्या है | what is solid waste management in hindi

ठोस कचरा प्रबंधन क्या है | what is solid waste management in hindi: आधुनिक समय की भयानक समस्याओं में कचरा निपटान एक बड़ी वैश्विक समस्या हैं.

खासकर शहरी जीवन में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के कोई बड़े प्रबंध नहीं होते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप नगर निकायों के पास उस अगलनीय कूड़े को कई किलोमीटर की भूमि पर शहर के बाहर ढेर लगाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता हैं.

आज के निबंध, भाषण अनुच्छेद में हम ठोस कचरे के प्रबंधन, निपटान, उपाय आदि पर विस्तृत अध्ययन करेंगे.

what is solid waste management in hindi

ठोस कचरा प्रबन्धन का अर्थ वातावरण व जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ठोस कचरे का उपचार, निस्तारण, पुनः उपयोग, पुनः चक्रण तथा ऊर्जा में परिवर्तन करने की प्रक्रियाओं के संचालन का प्रबन्धन करना हैं.

यहाँ ठोस कचरे solid waste management से आशय है कि घरों, कारखानों, उद्योगों, अस्पतालों एवं अन्य संस्थानों से निकलने वाला सूखा व गीला अनुपयोगी सामान.

सरल भाषा में कहे तो ठोस कचरे का अर्थ हैं, हमारे घरों, उद्योगों, कार्यालयों, स्कूलों आदि में काम में ली जाने वाली वे कठोर वस्तुएं जिन्हें एक बार उपयोग के बाद हम यूँ ही फेक देते हैं, जो समय के साथ न तो गलती हैं न उसका भर्जन होता हैं.

कांच, प्लास्टिक की बनी वस्तुएं, इलेक्ट्रॉनिक के सामान, इलाज में प्रयुक्त सीरिज और दवाई की शीशियाँ आदि हजारों ऐसे उत्पाद हैं जो एक बार काम में लेने के बाद सालो साल उसी अवस्था में रहते हैं.

हमारे घरों में प्रयुक्त सब्जी, फल, पौधे की पत्तियां, गोबर आदि कुछ समय बाद खाद के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं. जबकि ठोस वस्तुओं के अवशिष्ट के निपटान की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं हैं. इससे वे न केवल कई एकड़ की जमीन कोई बंजर बनाते हैं बल्कि जमीन और वायु में प्रदूषण भी बढ़ाते हैं.

क्या हैं ठोस कचरा What is solid waste In Hindi

मूल रूप से एक ठोस अपशिष्ट ठोस या अर्द्ध ठोस घरेलू अपशिष्ट स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी कचरा वाणिज्यिक अपशिष्ट, संस्थागत अपशिष्ट, खाद्य अपशिष्ट, तुच्छ पदार्थ संस्थागत अपशिष्ट, निर्माण सम्बन्धी और विध्वंस अपशिष्ट आदि श्रेणियों में विभाजित हो सकता हैं.

वर्तमान में भारत में प्रतिवर्ष लगभग 960 मिलियन टन ठोस कचरा उत्पन्न होता हैं. यह न केवल उत्पन्न कचरे की मात्रा हैं, बल्कि यह स्वास्थ्य के मुद्दों और पर्यावरणीय गिरावट की ओर भी इंगित करता हैं.

देश में उत्पन्न होने वाले कचरे का केवल 68 प्रतिशत एकत्र किया जाता हैं. जिनमें से 28 प्रतिशत का प्रबंधन नगर निगम के अधिकारियों द्वारा किया जाता हैं.

यूनाइटेड नेशंस सेंटर फॉर ह्यूमन सेटलमेंटस के अनुसार बड़े शहरों में पैदा होने वाले सभी कचरे में से 25 से 55 फीसदी के बीह ही नगरपालिका के अधिकारी इकट्ठा कर पाते हैं.

अनछुए अपशिष्ट से तीस हजार टीपीडी से अधिक दहनशील अपशिष्ट उत्पन्न हो सकता हैं. अपशिष्ट की उत्पन्न मात्रा को यदि एकत्र किया जाए और उसका भलीभांति उपयोग किया जाए तो प्रभावी रूप से ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती हैं.

ठोस अवशिष्ट प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य अधिकतम मात्रा में कूड़े करकट को संयंत्र के माध्यम से पुनरुपयोग अथवा खाद के रूप में बदलने हेतु लायक बनाना. इस कचरे का समुचित उपयोग करके बिजली उत्पादन किया जा सकता हैं.

साथ ही बड़ी मात्रा में भूमि के अधिग्रहण को रोका जा सकता हैं. दिल्ली जैसे महानगरों के बाहर मीलो मील तक इसी तरह के कूड़े के ढेर हमारी सफाई व्यवस्था की नाकामी को खुलेआम बया करते हैं. PIB की 2016 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में प्रतिदिन 62 मिलिय न टन कचरा खुले में फेक दिया जाता हैं.

शहरीकरण, औद्योगिकरण और आर्थिक विकास की इस दौड़ में हमने ऐसे ऐसे यंत्र और साधन तो बना लिए जिससे हमें तत्कालिक सुख तो मिल गया,

मगर उसके निपटान को लेकर कोई साफ़ कार्ययोजना नहीं थी, जिसका नतीजे में हम हर साल कम होती उपजाऊ जमीन और आसमान छूती ठोस कूड़े की मीनारे किसी भी शहर में स्पष्तया देख सकते हैं. इस विकराल समस्या से दो दो हाथ करने के लिए प्रत्येक नागरिक की भागीदारी परिहार्य हैं.

हम अपने घर में कम से कम दो तरह के कचरा पात्र अवश्य रखे, ताकि निपटान योग्य कचरे का तो समुचित उपयोग किया जा सके.

अपशिष्ट को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

मूल रूप से हम कचरे को उसकी प्रकृति के आधार पर पांच भागों में विभाजित करते हैं, इसके प्रकार इस तरह हैं.

  • ठोस अपशिष्ट (Solid Waste) : ठोस कचरे में कठोर बनी वस्तुएं शामिल की जाती हैं जो घरों, उद्योगों और अस्पतालों में मुख्य रूप में उपयोग में ली जाती हैं.
  • तरल अपशिष्ट (Wet Waste) : कचरे के इस प्रकार में दूषित या गंदा जल आता हैं, घरों से निकलने वाला गंदा जल तथा उद्योगों से निष्कासित किया जाने वाला प्रदूषित जल इसके अंतर्गत आता हैं.
  • सूखा अपशिष्ट (Dry waste) : सूखे अपशिष्ट में वे पदार्थ या वस्तुएं आती हैं जो पूरी तरह सूखी होती हैं, उसमें द्रव की मात्रा बिलकुल न के बराबर होती हैं.
  • बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट (Biodegradable Waste) : कोई भी कार्बन युक्त पदार्थ जो मिट्टी में दबाने से गल जाता हैं तथा मृदा के जीवों द्वारा कार्बनडाई ऑक्साइड. मीथेन और जल की मात्रा को अवशोषित कर लिया जाता हैं.
  • नॉनबायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट (Nonbiodegradable Waste:) : ये अधिकतर ठोस प्लास्टिक और धातु के अवशिष्ट होते हैं जिन्हें मृदा के जीवो द्वारा संश्लेषित नहीं किया जा सकता, परिणामस्वरूप वे सालो साल उसी अवस्था में पड़े रहते हैं.

ठोस कचरा प्रबंधन के उपाय (Solid Wastes Controlling Methods)

भारत में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए निम्नलिखित उपाय किये गये है. कचरा न्यूनीकरण एवं पुनः प्रयोग, कचरे का पुनः चक्रण, कचरा संग्रहण, उपचार एवं निस्तारण, भाष्मीकरण, गैसीकरण व पाइरोलिसिस.

  • कचरा न्यूनीकरण एवं पुनः प्रयोग- उत्पादों का न्यूनीकरण व पुनः उपयोग कचरा निवारण के उपाय हैं. न्यूनीकरण में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं दोनों को कचरा कम उत्पादित करने को बताया जाता है. पुनः प्रयोग विधि में जनता को पुनः उपयोगी सामान क्रय करने को प्रोत्साहित किया जाता हैं.
  • कचरे का पुनः चक्रण – कचरे को उपयोगी माल के रूप में उपयोग करना और कचरे की मात्रा कम करना पुनः उपयोग चक्रण कहा जाता है. पुनः चक्रण विधि के तीन स्तर होते है. संग्रहित कचरे में से पुनः चक्रनीय पदार्थों एवं धातुओं को छांटकर एकत्रित काटना, एकत्रित पदार्थों या धातुओं से कच्चा माल तैयार करना, कच्चे माल से नए उत्पाद बनाना.
  • कचरा संग्रहण- शहरों में स्थानीय निकायों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों द्वारा विशेष गंदगी वाले कचरे तथा पुनः चक्रीय कचरे को हफ्ते में दो बार संग्रह करवाना चाहिए, ऐसे कचरे जो मक्खियों के प्रजनन एवं आश्रयस्थल हो, या बदबू फैलाने वाले तथा खुले में फैले कचरे को शीघ्रता से उठवाया जाए.
  • कचरा उपचार एवं निस्तारण – कचरा उपचार तकनीकी यह खोज करती है कि प्रबंधन फॉर्म बदलकर कचरे की मात्रा कम की जाय, जिससे कचरा निस्तारण सरल बन जाए. कचरा निस्तारण की विधियाँ कचरे की मात्रा, प्रकार एवं रचना के आधार पर प्रयोग में लाई जाती हैं. जैसे उच्च तापमान पर, जमीन में दबाना, जैविक प्रक्रिया अपनाकर कचरे का निस्तारण करना. उपचार और निस्तारण में से एक विकल्प चुना जाता है. कचरा और अंतिम रूप देने के लिए प्रबंधक तकनीकी कम करना, पुनः चक्रण करना, पुनः उपयोग कर दबाने की तकनीक काम में ली जाती हैं.
  • भाष्मीकरण – भाष्मीकरण मुख्य सामान्य तापीय प्रक्रिया है. इसमें कचरे का दहन ओक्सीजन की उपस्थिति में किया जाता हैं. भाष्मीकरण के बाद कचरा कार्बनडाई ऑक्साइड, पानी की भाप तथा राख में बदल जाता है. यह तरीका ऊर्जा की रिकवरी का साधन है. इसका उपयोग बिजली बनाने के लिए ऊष्मा देने के लिए किया जाता हैं. भाष्मीकरण ऊष्मा देने का अतिरिक्त साधन है. इसमें परिवहन की लागत कम की जाती है. ग्रीन हाउस गैस मीथेन का उत्पादन कम किया जाता हैं.
  • गैसीकरण व पाइरोलिसिस – गैसीकरण व पाइरोलिसिस दोनों समान तापीय प्रक्रिया है. इन प्रक्रियाओं में कचरे के अवयवों को उच्च ताप पर विखंडित किया जाता है. गैसीकरण में कचरे का दहन कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में किया जाता हैं. और पाइरोलोसिस में कचरे का दहन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किया जाता हैं ये तकनीक कम ओक्सीजन या बिना ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में प्रयोग की जाती हैं. जलने योग्य और बिना जलने योग्य गैसों के मिश्रण से पाइरोसिस द्रव्य पैदा किया जाता है. पाइरोलिसिस की विशेषता है कि वायु प्रदूषण किये बिना उर्जा का पुनः भरण किया जाता है.

ठोस कचरा प्रबंधन के लाभ (advantages and disadvantages of solid waste management pdf)

ठोस कचरा प्रबंधन की प्रक्रिया के अनेक लाभ होते है. इन लाभों में जन स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तन्त्र को तो लाभ मिलता ही है. साथ ही अनेक प्रकार की सामाजिक आर्थिक दशाओं में भी लाभ की प्राप्ति होती हैं. ठोस कचरा प्रबन्धन से उत्पन्न लाभ निम्नानुसार हैं.

  • ठोस कचरा प्रबंधन से आग लगने, चूहे फैलना, संक्रामक रोगों के कीटों एवं रोगाणुओं के फैलने पर नियंत्रण एवं आवारा जानवरों पर नियंत्रण किया जाता हैं.
  • ठोस कचरा प्रबन्धन से रोग नियंत्रित होंगे, जन स्वास्थ्य में सुधार होगा, श्रम करने की क्षमता बढ़ेगी, अस्पताओं में मरीजों का भार कम होगा.
  • इसके कारण जहरीले पदार्थों की निकासी कम होने से जल प्रदूषण नहीं हो सकेगा.
  • सस्ता और अच्छा वानस्पतिक खाद मिलेगा, कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ेगी तथा पैदावार अधिक होगी.
  • बिजली उत्पादन के लिए सस्ती ऊर्जा प्राप्त होगी, जिससे बिजली उत्पादन व्यय कम होगा.
  • कचरा निस्तारण से कच्चा माल मिलेगा, जिससे पुनः चक्रण कके पदार्थों से बनी वस्तुएं सस्ती मिलेगी.
  • कचरा निस्तारण कार्यों में वृद्धि होने पर रोजगार के अवसर अधिक उपलब्ध होगे तथा आय में वृद्धि होगी.
  • इससे कीमती धातुओं की उपलब्धि होगी.

ठोस कचरा प्रबंधन की प्रक्रिया (Process oF solid waste management pdf in hindi)

ठोस कचरा प्रबंधन से तात्पर्य वातावरण एवं जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ठोस कचरे के उपचार, निस्तारण, पुनः प्रयोग, पुनः चक्रण व ऊर्जा में परिवर्तन करने की प्रक्रिया से हैं. ठोस कचरे के निस्तारण हेतु शहरी निकायों में यह कार्य सफाई निरीक्षकों को सौप रखा हैं.

नियमित एवं ठेका पद्धति पर नियुक्त सफाई कर्मचारी कूड़े को घरों, अस्पतालों व अन्य प्रतिस्ठानों से लाकर कूड़ा संग्रहण केंद्र पर एकत्रित करते हैं. कचरे के संग्रहण विभिन्न माध्यमो से किया जाता है.

कचरा निस्तारण केंद्र पर कचरा उत्पादन स्थलों के अनुसार अलग अलग श्रेणियां निर्धारित कर रखी है. इन श्रेणियों में घरेलू कचरा, औद्योगिक कचरा व विनिर्माण सामग्री का कचरा तथा व्यापारिक प्रतिस्ठानों का कचरा शामिल होता हैं.

इस विविध प्रकार के कचरे में जैविक कचरे, अजैविक कचरे, प्लास्टिक शीशी, धातुओं, कागज, बैटरी, विषैले पदार्थ, ज्वलनशील पदार्थ, विष्फोटक पदार्थ, रेडियोधर्मी पदार्थ तथा संक्रामक रोग फैलाने वाले पदार्थ शामिल हैं.

ठोस कचरा प्रबंधन की आवश्यकता (solid waste management needs and importance)

आधुनिक काल में तेजी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकीकरण व वातावरण प्रदूषण के प्रति लापरवाही ने शहरों में ठोस कचरे की समस्या पैदा कर दी है. इनके कारण शहरों में गंदगी का विस्तार हो गया है.

इस गंदगी से बीमारियाँ फैलने लगी है. इस समस्या के निवारण के लिए शहरी निकायों में ठोस कचरा प्रबंधन या कचरा निस्तारण कार्यक्रम आवश्यक हो गया हैं.

ठोस कचरा प्रबंधन कार्यक्रम के उद्देश्य (objectives of solid waste management in india)

भारत में ठोस कचरा प्रबंधन कार्यक्रम के निम्न उद्देश्य हैं.

  • ठोस कचरे के उचित उपचार या निस्तारण की व्यवस्था करना ताकि लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.
  • कचरे के पुनः प्रयोग व पुनः चक्रण की व्यवस्था करना.
  • कचरे को ऊर्जा में परिवर्तित करने की प्रक्रियाओं का संचालन एवं उनका प्रबंधन.
  • ठोस कचरे के प्रबंधन को प्रशिक्षण देना.
  • ठोस कचरा जनित समस्याओं से बचने के हेतु कचरा प्रबंधन पर नए नए शोध कार्य, विकास कार्य तथा उपयोग की सुविधाओं को उपलब्ध करवाना.
  • कचरा जनित बीमारियों को कम करना
  • पर्यावरणीय दशाओं पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को कचरा प्रबंधन द्वारा नियंत्रित करना.

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 (Solid Waste Management Rules, 2016)

भारत सरकार ने कानूनी स्तर परा पहल करते हुए ठोस अपशिष्ट को प्रबंधित करने तथा उसके प्रसार को रोकने व एक व्यवस्थित प्रणाली में आम नागरिकों के योगदान के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन नियम 2016 को प्रस्तुत किया हैं, जो इस तरह हैं.

  • जैव निम्नीकरणीय, गैर-जैव निम्नीकरणीय एवं घरेलू खतरनाक अपशिष्टों को प्रत्येक घर में अलग अलग पात्र में डाला जाए तथा इन्हें केवल नगरीय निकाय के प्रतिनिधि को ही सौपा जाए.
  • स्थानीय निकाय को यह अधिकार होगा कि वह प्रदूषणकर्ताओं से दंड शुल्क का भुगतान ले, निकाय अपनी नियमावली के अनुसार शुल्क व दंड निर्धारित करें.
  • अपशिष्ट निपटान नियम 2016 में सरकार के सभी मंत्रालयों, प्रशासनिक इकाइयों तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं स्थानीय निकायों के कर्तव्यों का वर्णन भी किया गया हैं.
  • इस अधिनियम के नियमों का प्रभाव नगरीय क्षेत्रों में ही होगा.
  • अपशिष्ट उत्पादन कर्ता जो प्रतिदिन 20 से 300 टन महीने तक अपशिष्ट निर्माण करता हैं उन्हें स्थानीय निकाय की पूर्व अनुमति लेनी होगी तथा कर भी देना होगा.
  • ये नियम अक्टूबर 2016 से देशभर में प्रभावी हैं तथा प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं पर लागू होते हैं.  इससे पूर्व ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 कानून था.

मॉडल शहरों का विकास Development of Model Cities

ऐसा नहीं है कि हम आने वाली सदियों तक ठोस कचरे की समस्या का सामना करते रहेगे. सरकारे और निकाय तेजी से इस दिशा में काम कर रहे है तथा नये विकसित किए जा रहे मॉडल शहरों में कूड़ा फेकने से खराब हुए स्थलों को सही करके कूड़ा निपटान की उचित युक्तियों को अपनाया जा रहा हैं.

पुणे, इंदौर, अम्बिकापुर आदि शहरों को मॉडल टाउन की तर्ज पर विकसित किया जा रहा हैं. शहर में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए इकाईयाँ काम कर रही हैं. जो शहर के कचरे को संग्रह करने, छंटाई और प्रसंस्करण की विधियों के साथ निपटान कर रही हैं.

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ई-कचरा पर निबंध | essay on e-waste in hindi.

कचरा प्रबंधन का महत्त्व पर निबंध | Essay on The Importance of Waste Management in Hindi

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ADVERTISEMENTS:

कचरा प्रबंधन का महत्त्व पर निबंध | Essay on The Importance of Waste Management in Hindi!

शहरों में आज दुनिया की करीब आधी आबादी बसती है । भविष्य में भी शहरों की संख्या तथा वहां बसती आबादी में वृद्धि होती जायेगी, ऐसा कहना गलत नहीं होगा । शहरी जिंदगी आज की जरूरत है, मजबूरी है और दिन-प्रतिदिन बढती हुई आबादी की नियति ।

इस दिशा को बदलना संभव नहीं है, तो क्या हम इस अभिशाप को वरदान में या आंशिक वरदान में या कम-से-कम सहने लायक, जीने लायक, परिवेश में बदल सकते हैं । इसका उत्तर यदि हम ‘नहीं’ देते हैं, तो हमें इसका उत्तर ‘हां’ में ही देना होगा और शहरों में अच्छे जीवन के तरीके निकालने होंगे ।

यदि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम शहरी को स्वच्छ, स्वास्थ्यपूर्ण सुविधायुक्त अच्छे पर्यावरण में जीने का अधिकार है, तो हमें इसके रास्ते भी खोजने होंगे । इसमें विलंब करना घातक होगा और हम अधिकाधिक शहरों को नरक में परिवर्तित करते रहेंगे । शहरों में कचरा बढता जा रहा है, पर इसके निस्तारण की सुविधाएं नहीं बढ रही हैं । स्वायत्तशासी संस्थाएं और उनमें बैठे लोग इसकी ज्वलंत जरूरतों के प्रति आंखें मूंदे बैठे हैं, जिसके भयानक परिणाम हो सकते हैं ।

नागरिक सुविधाओं की प्राप्ति के लिए केवल सरकार या अर्द्धसरकारी संगठनों, प्राधिकरणों, निगमों, नगर परिषदों आदि पर निर्भर रहना गलत है और उनकी अल्प संवेदनशीलता को और कम करना है । इसके लिए नागरिकों को न केवल सतत जागरूक रहना होगा वरन् अपने अधिकारों के लिए एक लंबी लड़ाई के लिए भी संकल्प लेना होगा । यह लड़ाई भी अनेक स्तरों पर होगी ।

तरह-तरह के अनेक संगठनों से निरंतर संपर्क बनाये रखना और उनका सहयोग प्राप्त करना इस लड़ाई का एक मुख्य भाग होगा । हर नागरिक को अपने कर्त्तव्यों के प्रति उतना ही जागरूक और जुझारू बनना पडेगा, जितना सजग और सक्रिय वह अपने अधिकारों के प्रति होता है ।

समस्याओं को सुलझाने की यही कुंजी है । हर नागरिक को नगर में अपनी छवि देखनी होगी, उसके प्रति गहरा लगाव और जुड़ाव पैदा करना होगा तभी हमारे शहर चमकीले और मानवीय बन सकते हैं, रह सकते हैं । हर शहर को अपना चरित्र बनाना चाहिए, उसकी विशेषताएं खोजनी और विकसित करनी चाहिए । हर शहर को अपना परंपरागत चरित्र और परंपरागत गौरव कायम रखना चाहिए और विकास के नाम पर शहर की आत्मा को नष्ट होने से बचाना चाहिए । इन सब पर ध्यान देने की अविलम्ब आवश्यकता है ।

प्राथमिकता से जिन उद्देश्यों को प्राप्त करना अत्यत ही जरूरी है उनमें एक है- ‘कचरा प्रबंधन’ । कचरा प्रबंधन शहरी जीवन के लिए एक बहुत बडी और विकराल चुनौती है । कचरे से उत्पन्न समस्याएं बढ़ती जा रही हैं और शहरों को शीघ्रता से नरक में परिवर्तित कर रही हैं । किंतु अफसोस की बात है कि कचरे को सीमित करने, उसको शीघ्रता से स्थानान्तरित करने, नष्ट करने, या रीसाइक्लिंग करने, उनका उपयोग करने की तरफ समुचित चिंता नहीं दिखाई जा रही है ।

इस संबंध में दुनिया भर में अभिनव प्रयोग हो रहे हैं क्योंकि यह समस्या एक शहर या एक देश या एक महाद्वीप की नहीं है । इन प्रयोगों और अनुभवों का लाभ उठाने की हमें कोशिश करनी चाहिए ।

इस तरह अनेक प्रश्न कचरा प्रबंधन से जुड़े हुए हैं ।

समस्या की गंभीरता और जटिलता को आम नागरिक तक पहुचाना और उनका सहयोग प्राप्त करना बहुत दुसह काम है पर इसके सिवाय कोई रास्ता भी नहीं है । कर्मचारी और नागरिक सभी सड़क, गली में कचरा फेंकते हैं, या फिर नालियों में डालते हैं । नालियां अवरूद्ध होती हैं तथा इससे केवल पानी ही बाहर नहीं फैलता, स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन जाता है ।

कचरे के ढेर इकट्‌ठा करके सार्वजनिक स्थानों पर डाल दिये जाते हैं और उनको तत्काल उठाने की कोई व्यवस्था नहीं है । बिना जन सहयोग, जन प्रशिक्षण और सरकारी सक्रियता के कोई कचरा प्रबंधन संभव ही नहीं है । जहां-जहां इस बारे में समन्वय हुआ है वहां स्थितियां बदली हैं, शहरी जिंदगी में सुधार हुआ है । इसी तरह के संकल्पों से सूरत जिले ने अपनी सूरत बदली है । कोलकाता की तस्वीर भी बदल रही है । गंदगी के ढेर कई महानगरों में कम होते जा रहे हैं ।

कचरा प्रबंधन से हम छोटे शहरों की समस्याओं को काफी हद तक हल कर सकते हैं । जरूरत है राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिबद्धता की और समस्याओं को समझने की और निर्णयों को साकार करने की । राजस्थान के छोटे शहरों से इसका प्रारंभ कर हालात पर अभी से काम किया जा सकता है । बड़े शहरों में इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार दोषपूर्ण है और लोगों की मुश्किलें बढ़ाएगा । बिना नई दिशा के बारे में प्रशिक्षण दिये जो काम हो रहा है वह नई समस्याएं खडी करेगा ।

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(2022) कचरा प्रबंधन पर निबंध- Essay on Waste Management in Hindi

( ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध पढ़ने के लिए- click here )

कचरा प्रबंधन का अर्थ

कचरा प्रबंधन क्यो आवश्यक है?

कचरे को प्रबंधन करना बहोत जरूरी है, क्योकि यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। जैसे की औद्योगिक अपशिष्ट भूमि की उपजता को कम कर देता है। इससे मलेरिया, टी.बी, पीलिया और हैजा जैसी कई बीमारियाँ उत्पन्न होती है। इसीलिए हमे कचरा प्रबंधन करना आवश्यक है।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट में आर्सेनिक, मरकरी, लेड और कैडमियम जैसे कई जहरीले पदार्थ होते है। यह पदार्थ पर्यावरण और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते है। विश्वभर में पैदा होने वाले कुल ई-कचरे का चार प्रतिशत हिस्सा भारत में उत्पन्न होता है।

इसके अलावा प्लास्टिक, कांच, दवाई की शीशियाँ, धातु, चमडा, इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसा ठोस अपशिष्ट भी हमारे लिए नुकसानकारक है। यह कचरा कई साल बीत जाने के बाद भी नष्ट नहीं होता, जबकि भारत में प्रतिवर्ष 960 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है।

kachra prabandhan kya hai

कचरे को फेंक देने से भूमि प्रदूषण होता है। इसकी वजह से उपज भूमि बंजर बन जाती जाती है, जिससे हमे कृषि में नुकसान होता है। इसके अलावा जब जमा हुआ कचरा सड़ने लगे तब उसमे से दुर्गन्ध निकलती है। इस दुर्गन्ध से ना सिर्फ आस-पास का वातावरण दूषित होता है, बल्कि कई खतरनाक बीमारिया भी फैलती है। इन बीमारियो के रोकने के लिए हमे कचरा प्रबंधन करना आवश्यक है।

जब यह अपशिष्ट नालियों से बह कर जल स्रोतों में मिल जाता है, तब यह जल को प्रदूषित करता है। इससे कई जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है। इसके अलावा अगर इसी कचरे को जलाया जाए तो यह वायु को प्रदूषित करता है।

इस तरह हमे कचरे के इन सभी प्रदूषणों से बचने के लिए कचरे का सही प्रबंधन करना आवश्यक और जरूरी है।

कचरा प्रबंधन के उपाय

प्राचीन समय में मनुष्य एक गड्ढा खोद कर कचरे को दफन कर देते थे। इन मनुष्यों के लिए यही कचरा प्रबंधन था। लेकिन वर्तमान में हम इस तकनीक का उपयोग नहीं कर सकते है। क्योकि उस समय उनकी आबादी और कचरा बहुत कम था।

जबकि आधुनिक समय में हमारी आबादी और कचरा बहुत ज्यादा है। इसके साथ-साथ अगर वर्तमान में मनुष्य कचरे को दफनाए तो उसमे कीड़े और जीवजंतु उत्पन्न होने लगेंगे। इससे बड़े पैमाने पर बीमारी फैल सकती है। इसलिए आज के समय में कचरे का सही प्रबंधन करना जरूरी है। इसके लिए कई उपाय और तरीके है, जिसे हम बारी-बारी जानेगे। 

कचरे को पुनर्प्राप्त करके उसको नई सामग्री और वस्तुओं में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को पुनर्चक्रण कहा जाता है। इस प्रक्रिया से कचरे की उपयोगी सामग्रियों की बर्बादी को रोका जा सकता है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली चीजे कई जगह कच्चे माल के लिए उपयोगी होती है। पुनर्चक्रण से वायु और जल प्रदूषण को बहोत हद तक रोका जा सकता है। इस प्रक्रिया से ग्रीनहाउस गैस कम उत्पन्न होता है।

लैंडफिल एक जगह है, जहां कूड़ा-कचरा रखा जाता है। इसे सामान्य भाषा में समझे तो, जमा हुए कचरे को जब भूमि में दफन करके कचरे का निपटान किया जाए उसे लैंडफ़िल कहते है। परंतु जहा लोग रहते है, वहा कभी भी लैंडफिल को नहीं रखा जा सकते। क्योकि उसमे दुर्गंध होती है। लैंडफिल कचरा प्रबंधन करने का सबसे लोकप्रिय उपाय है।

इसमे कचरे को सबसे पहले लेंडफिल में लाकर छांटा जाता है, ताकि हर वो चीज़ को पुनर्चक्रित कर सके जो काम की है। उसके बाद कचरे को छोटे टुकड़ों में कुचल कर दफनाया जाता है। कई जगहो पर लेंडफिल से मीथेन गैस बनाई जाती है। इस गैस का उपयोग ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। परंतु वर्तमान में यह प्रकिया कम होती जा रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि, विश्व में मानवो की संख्या बढ़ रही है और कचरे को दफन करने की जगह कम होती जा रही है।

कचरा प्रबंधन करने के लिए खाद एक आसान और प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमे पेड़-पौधों और रसोई जैसे जैविक कचरे का प्रबंध किया जाता है। इस प्रक्रिया में जैविक कचरे को एक जगह जमा कर कई महीनों तक रखा जाता है, ताकि इसके अंदर रोगाणुओ का विघटन हो जाए। इसे कचरा प्रबंधन की सबसे सर्वोत्तम प्रकिया कहा जाता है। क्योंकि खाद प्रक्रिया असुरक्षित जैविक कचरे को सुरक्षित खाद में बदल देती है। लेकिन फिर भी यह प्रक्रिया आज बहोत प्रचलित नहीं है।

ऐसा कहा जाता है कि, पर्यावरण को बचाने के लिए हमे ठोस कचरे को व्यवस्थित रूप से प्रबंधित करना होगा। क्योकि यही कचरा पर्यावरण को नुकसान पहोचाता है। ठोस अपशिष्ट का निपटान करने के लिए सबसे ज्यादा भस्मीकरण प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में कचरे को उच्च तापमान में जलाकर अवशेषों और गैसीय उत्पादनो में परिवर्तित किया जाता है। यह प्रकिया अमेरिका और जापान जैसे देशो में बहोत लोकप्रिय है। हमारी नगरपालिकाए ठोस कचरे का निपटान करने के लिए इसी प्रक्रिया का उपयोग करती है।  

इस प्रक्रिया में कचरे को उच्च तापमान में विखंडित (अलग) किया जाता है। इसमे कचरे का दहन बहुत कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रो में किया जाता है। इस प्रक्रिया से पर्यावरण को कम नुकसान होता है।

गैसीकरण की तरह इस प्रक्रिया में भी अपशिष्ट को उच्च तापमान में विखंडित किया जाता है। लेकिन इसमे कचरे का दहन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किया जाता है। इस प्रक्रिया से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।

इस तरह हम इन सभी उपायो का उपयोग कचरे का सही प्रबंधन करने के लिए कर सकते है। इससे अपशिष्ट भी खतम हो जाएगा और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा।

कचरा प्रबंधन के फायदे

कचरा प्रबंधन का सबसे पहला फायदा यह है कि, इससे पर्यावरण स्वच्छ रहता है। यदि हमारे आस-पास के सभी कचरे का उचित निपटान किया जाए तो हम पर्यावरण को आसानी से स्वच्छ रख सकते है। कचरा प्रबंधन की पुनर्चक्रण प्रक्रिया से हमे नए उत्पादों के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है।

जब कचरे का सही निपटान किया जाएगा तब उसमे से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैस वातावरण में कम हो जाएगी। इससे ग्लोबल वार्मिंग और वायु प्रदूषण जैसी समस्याए उत्पन्न नहीं होगी।

कचरे से कई प्रकार की बीमारिया उत्पन्न होती है, जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। परंतु अगर हमने कचरे का प्रबंधन कर लिया तो इन बीमारियो से हम बच सकते है। इससे हमारे स्वास्थ्य में सुधार होगा। कचरे के संग्रह से लेकर उसके प्रबंधन तक कई लोग काम करते है। इसकी वजह देश में बड़ी मात्रा में रोजगार के अवसर भी प्राप्त होगे।

(यह भी पढे- कचरा एक बरबादी पर निबंध )

कचरा प्रबंधन के नुकसान

कचरा प्रबंधन करने के कुछ नुकसान भी है। जैसे की अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के लिए हमे मानव शक्ति के साथ-साथ अधिक धन भी चाहिए। क्योकि पुनर्चक्रण और लैंडफ़िल जैसी प्रक्रियाएं बहुत महंगी है। और हमारे भारत जैसे देशों में इन प्रक्रियाओं पर अधिक खर्च करना मुश्किल है। इसी वजह से हमारे लिए कचरा प्रबंधन की इन प्रक्रियाओ का उपयोग करना थोड़ा कठिन है।

इसके अलावा कचरा प्रबंधन की प्रक्रिया में लगे श्रमिकों के स्वास्थ्य को भी हमेशा खतरा रहता है। क्योंकि कचरे की दुर्गंध और उसमें शामिल जीवाणुओं से उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। कचरा जलाने से निकलने वाली हानिकारक गैस मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है।

परंतु दुनिया में बसी हर चीज़ के दो पहलू होते है, एक है फायदा और दूसरा है नुकसान। इस तरह कचरा प्रबंधन के भी दो पहलू है। परंतु कचरा प्रबंधन करने से सभी लोगो को लाभ होगा और ना करने से सभी लोगो का नुकसान। इसलिए हमे कचरा प्रबंधन करना जरूरी है।

हम सभी भारतीयों को कचरे का प्रबंधन करके प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक सुंदरता हमारे लिए एक विरासत है। हम सभी प्रकृति का एक हिस्सा हैं और यह हमारी जिम्मेदारी है कि, हम कचरे के खतरनाक प्रभावों से प्रकृति को कैसे बचाए? आशा करता हु कि आज से ही आप प्रकृति को बचाने के लिए कचरे को कम उत्पन्न करेंगे और उसके प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान देंगे।

अगर आपको इस निबंध से कुछ भी लाभ हुआ हो, तो इसे शेर करना ना भूले। कचरा प्रबंधन पर निबंध पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद ( Essay on Waste Management in Hindi)

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सुखा, गीला कचरा छांटने के लिए छात्रों ने बनाई अनोखी मशीन, केंद्र ने दिया आर्थिक सहयोग का भरोसा

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Published : Mar 22, 2023, 12:55 PM IST

Updated : Mar 22, 2023, 1:57 PM IST

बड़े शहरों में ठोस कचरे का निस्तारण और गीले-सूखे कचरे को अलग करना एक बड़ी समस्या बना हुआ है. इसी कारण ज्यादातर शहरों के आसपास कचरे के बड़े-2 पहाड़ देखने को मिलते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा के छात्रों ने एक मॉडल तैयार किया है. जो हर दिन करीब 50 टन कचरे का स्वत:ही निस्तारण कर सकता है.

कचरा निस्तारण का अनोखा मॉडल

जयपुर. बड़े शहरों में ठोस कचरे के मॉडर्न तरीके से निस्तारण और गीले-सूखे कचरे को अलग करने के लिए राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा के विद्यार्थियों ने एक अनोखा मॉडल तैयार किया है. इसे जयपुर में आईटी दिवस के मौके पर छात्रों ने प्रदर्शित किया है. इसे बनाने वाले युवाओं का दावा है कि इस मॉडल की मदद से एक दिन में 50 टन कचरे का निस्तारण किया जा सकता है. उन्हें केंद्र सरकार की ओर से इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पांच करोड़ रुपए की आर्थिक मदद की पेशकश भी की गई है. ऐसे में उनका यह नवाचार देश के अधिकांश बड़े शहरों की एक ज्वलंत समस्या का समाधान कर सकता है. पहला पार्ट टैंक- इसमें जेसीबी की मदद से कचरा डाला जाता है. इसके भीतर एक बेल्ट लगातार घूमता रहता है. जिस पर गीला और सूखा कचरा एक साथ चलता रहता है. दूसरा पार्ट कैमरा- इस मॉडल में एक हाई क्वालिटी का कैमरा लगा है. जो बेल्ट पर घूमते कचरे को उसकी श्रेणी के हिसाब से स्केन करता है और लगातार अपडेट रोबोटिक आर्म को भेजता रहता है. तीसरा पार्ट रोबोटिक आर्म- रोबोटिक आर्म एक तरह से जेसीबी जैसा दिखने वाला पार्ट है जो कैमरे से मिलने वाले निर्देशों के अनुसार कचरे को उठाकर श्रेणीवार बने बॉक्स में डालता रहता है. यह प्रक्रिया बहुत तेजी से चलती रहती है. जिसमें कम समय में कचरे का निस्तारण हो जाता है. मैनुअल कचरा अलग करना मानव जीवन से है खिलवाड़ इस प्रोजेक्ट से जुड़े कृष्णकांत यादव बताते हैं कि आमतौर पर बड़े आयोजनों में गीले कचरे और सूखे कचरे के लिए अलग-अलग डस्टबिन काम में नहीं लिए जाते हैं. यही समस्या घरों में भी सामने आती है. जहां गीले कचरे और सूखे कचरे के लिए एक ही डस्टबिन का उपयोग किया जाता है और कचरा परिवहन के लिए जो गाड़ियां आती हैं. हम उनमें हर तरह के कचरे को एक साथ डालते हैं. ये गाड़ियां कचरे को डंपिंग यार्ड में डाल देती है. जहां मानव श्रम द्वारा इसे अलग किया जाता है. इसका अभी तक कोई तकनीकी उपाय नहीं खोजा जा सका है. यह हम सभी के स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत खतरनाक है. जमीन, हवा और पानी को नुकसान पहुंचाते हैं डंपिंग यार्ड कृष्णकांत यादव का कहना है कि इसके साथ ही यह कचरा और डंपिंग यार्ड जमीन, पानी और हवा तक को प्रदूषित करता है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमने यह सिस्टम इजाद किया है. जो हर दिन निकलने वाले कचरे का उसी दिन निस्तारण कर सकता है. वे बताते हैं कि हाथ से कचरा अलग करने की प्रक्रिया में हर दिन निकलने वाले कचरे का महज 12 फीसदी हिस्सा ही अलग हो पाता है. जबकि 88 फीसदी कचरा मिश्रित ही रह जाता है. इससे कचरे के ढ़ेर बन जाता है और बाद में वही ढ़ेर पहाड़ का आकर लेते जाते हैं. हमारा प्रयास है कि हर दिन निकलने वाले कचरे का उसी दिन निस्तारण हो जाए.

जयपुर जैसे शहर में लगाने पड़ेंगे 28 प्लांट इस प्रोजेक्ट से जुड़े नकुल शर्मा ने बताया कि जयपुर में आबादी के लिहाज से 1395 टन कचरा रोजाना निकलता है. जबकि हमारा यह सिस्टम 50 टन कचरा हर दिन निस्तारित कर सकता है. ऐसे में जयपुर में इस तरह के 28 प्लांट लग जाए तो कचरा संग्रहण की समस्या से निजात मिल सकती है.

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) - छात्र जीवन में विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध (essay in hindi) लिखने की आवश्यकता होती है। हिंदी निबंध लेखन (essay writing in hindi) के कई फायदे हैं। हिंदी निबंध से किसी विषय से जुड़ी जानकारी को व्यवस्थित रूप देना आ जाता है तथा विचारों को अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने की गतिविधि से इन विषयों पर छात्रों के ज्ञान के दायरे का विस्तार होता है जो कि शिक्षा के अहम उद्देश्यों में से एक है। हिंदी में निबंध या लेख लिखने से विषय के बारे में समालोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। साथ ही अच्छा हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने पर अंक भी अच्छे प्राप्त होते हैं। इसके अलावा हिंदी निबंध (hindi nibandh) किसी विषय से जुड़े आपके पूर्वाग्रहों को दूर कर सटीक जानकारी प्रदान करते हैं जिससे अज्ञानता की वजह से हम लोगों के सामने शर्मिंदा होने से बच जाते हैं।

आइए सबसे पहले जानते हैं कि हिंदी में निबंध की परिभाषा (definition of essay) क्या होती है?

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

कुछ सामान्य विषयों (common topics) पर जानकारी जुटाने में छात्रों की सहायता करने के उद्देश्य से हमने हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तथा भाषणों के रूप में कई लेख तैयार किए हैं। स्कूली छात्रों (कक्षा 1 से 12 तक) एवं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हिंदी निबंध (hindi nibandh), भाषण तथा कविता (useful essays, speeches and poems) से उनको बहुत मदद मिलेगी तथा उनके ज्ञान के दायरे में विस्तार होगा। ऐसे में यदि कभी परीक्षा में इससे संबंधित निबंध आ जाए या भाषण देना होगा, तो छात्र उन परिस्थितियों / प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन कर पाएँगे।

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छात्र जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के सबसे सुनहरे समय में से एक होता है जिसमें उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वास्तव में जीवन की आपाधापी और चिंताओं से परे मस्ती से भरा छात्र जीवन ज्ञान अर्जित करने को समर्पित होता है। छात्र जीवन में अर्जित ज्ञान भावी जीवन तथा करियर के लिए सशक्त आधार तैयार करने का काम करता है। नींव जितनी अच्छी और मजबूत होगी उस पर तैयार होने वाला भवन भी उतना ही मजबूत होगा और जीवन उतना ही सुखद और चिंतारहित होगा। इसे देखते हुए स्कूलों में शिक्षक छात्रों को विषयों से संबंधित अकादमिक ज्ञान से लैस करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की पाठ्येतर गतिविधियों के जरिए उनके ज्ञान के दायरे का विस्तार करने का प्रयास करते हैं। इन पाठ्येतर गतिविधियों में समय-समय पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) या लेख और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करना शामिल है।

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निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति ही निबंध है।

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  • हिंदी पत्र लेखन

आइए अब जानते हैं कि निबंध के कितने अंग होते हैं और इन्हें किस प्रकार प्रभावपूर्ण ढंग से लिखकर आकर्षक बनाया जा सकता है। किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) के मोटे तौर पर तीन भाग होते हैं। ये हैं - प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार।

प्रस्तावना (भूमिका)- हिंदी निबंध के इस हिस्से में विषय से पाठकों का परिचय कराया जाता है। निबंध की भूमिका या प्रस्तावना, इसका बेहद अहम हिस्सा होती है। जितनी अच्छी भूमिका होगी पाठकों की रुचि भी निबंध में उतनी ही अधिक होगी। प्रस्तावना छोटी और सटीक होनी चाहिए ताकि पाठक संपूर्ण हिंदी लेख (hindi me lekh) पढ़ने को प्रेरित हों और जुड़ाव बना सकें।

विषय विस्तार- निबंध का यह मुख्य भाग होता है जिसमें विषय के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। इसमें इसके सभी संभव पहलुओं की जानकारी दी जाती है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) के इस हिस्से में अपने विचारों को सिलसिलेवार ढंग से लिखकर अभिव्यक्त करने की खूबी का प्रदर्शन करना होता है।

उपसंहार- निबंध का यह अंतिम भाग होता है, इसमें हिंदी निबंध (hindi nibandh) के विषय पर अपने विचारों का सार रखते हुए पाठक के सामने निष्कर्ष रखा जाता है।

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अंत में यह जानना भी अत्यधिक आवश्यक है कि निबंध कितने प्रकार के होते हैं। मोटे तौर निबंध को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है-

वर्णनात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें त्योहार, यात्रा, आयोजन आदि पर लेखन शामिल है। इनमें घटनाओं का एक क्रम होता है और इस तरह के निबंध लिखने आसान होते हैं।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है। अक्सर ये किसी समस्या – सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत- पर लिखे जाते हैं। विज्ञान वरदान या अभिशाप, राष्ट्रीय एकता की समस्या, बेरोजगारी की समस्या आदि ऐसे विषय हो सकते हैं। इन हिंदी निबंधों (hindi nibandh) में विषय के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार व्यक्त किया जाता है और समस्या को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है। इनमें कल्पनाशीलता के लिए अधिक छूट होती है। भाव की प्रधानता के कारण इन निबंधों में लेखक की आत्मीयता झलकती है। मेरा प्रिय मित्र, यदि मैं डॉक्टर होता जैसे विषय इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

इसके साथ ही विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

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जिस प्रकार बातचीत को आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए लोग मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविताओं आदि की मदद लेते हैं, ठीक उसी तरह निबंध को भी प्रभावी बनाने के लिए इनकी सहायता ली जानी चाहिए। उदाहरण के लिए मित्रता पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखते समय तुलसीदास जी की इन पंक्तियों की मदद ले सकते हैं -

जे न मित्र दुख होंहि दुखारी, तिन्हिं बिलोकत पातक भारी।

यानि कि जो व्यक्ति मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है, उनको देखने से बड़ा पाप होता है।

हिंदी या मातृभाषा पर निबंध लिखते समय भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियों का प्रयोग करने से चार चाँद लग जाएगा-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

प्रासंगिकता और अपने विवेक के अनुसार लेखक निबंधों में ऐसी सामग्री का उपयोग निबंध को प्रभावी बनाने के लिए कर सकते हैं। इनका भंडार तैयार करने के लिए जब कभी कोई पंक्ति या उद्धरण अच्छा लगे, तो एकत्रित करते रहें और समय-समय पर इनको दोहराते रहें।

उपरोक्त सभी प्रारूपों का उपयोग कर छात्रों के लिए हमने निम्नलिखित हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तैयार किए हैं -

15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत 200 सालों के अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। यही वजह है कि यह दिन इतिहास में दर्ज हो गया तथा इसे भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इस दिन देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते तो हैं ही और साथ ही इसके बाद वे पूरे देश को लालकिले से संबोधित भी करते हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री का पूरा भाषण टीवी व रेडियो के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया जाता है। इसके अलावा देश भर में इस दिन सभी कार्यालयों में छुट्टी होती है। स्कूल्स व कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस से संबंधित संपूर्ण जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी जो निश्चित तौर पर आपके लिए लेख लिखने में सहायक सिद्ध होगी।

सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के नेता थे और बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। इसके माध्यम से भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल की थी। बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। विद्यार्थियों को अक्सर कक्षा और परीक्षा में सुभाष चंद्र बोस जयंती (subhash chandra bose jayanti) या सुभाष चंद्र बोस पर हिंदी में निबंध (subhash chandra bose essay in hindi) लिखने को कहा जाता है। यहां सुभाष चंद्र बोस पर 100, 200 और 500 शब्दों का निबंध दिया गया है।

भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस के सम्मान में स्कूलों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन सभी स्कूलों, सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में झंडोत्तोलन होता है। राष्ट्रगान गाया जाता है। मिठाईयां बांटी जाती है और अवकाश रहता है। छात्रों और बच्चों के लिए 100, 200 और 500 शब्दों में गणतंत्र दिवस पर निबंध पढ़ें।

26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू किया गया, इसमें भारत को गणतांत्रिक व्यवस्था वाला देश बनाने की राह तैयार की गई। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण (रिपब्लिक डे स्पीच) देने के लिए हिंदी भाषण की उपयुक्त सामग्री (Republic Day Speech Ideas) की यदि आपको भी तलाश है तो समझ लीजिए कि गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day speech in Hindi) की आपकी तलाश यहां खत्म होती है। इस राष्ट्रीय पर्व के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक बनाने और उनके ज्ञान को परखने के लिए गणतत्र दिवस पर निबंध (Republic day essay) लिखने का प्रश्न भी परीक्षाओं में पूछा जाता है। इस लेख में दी गई जानकारी की मदद से Gantantra Diwas par nibandh लिखने में भी मदद मिलेगी। Gantantra Diwas par lekh bhashan तैयार करने में इस लेख में दी गई जानकारी की मदद लें और अच्छा प्रदर्शन करें।

मोबाइल फ़ोन को सेल्युलर फ़ोन भी कहा जाता है। मोबाइल आज आधुनिक प्रौद्योगिकी का एक अहम हिस्सा है जिसने दुनिया को एक साथ लाकर हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मोबाइल में इंटरनेट के इस्तेमाल ने कई कामों को बेहद आसान कर दिया है। मनोरंजन, संचार के साथ रोजमर्रा के कामों में भी इसकी अहम भूमिका हो गई है। इस निबंध में मोबाइल फोन के बारे में बताया गया है।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने जनभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया। इस दिन की याद में हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। वहीं हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Diwas) मनाया जाता है। इस लेख में राष्ट्रीय हिंदी दिवस (14 सितंबर) और विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) के बारे में चर्चा की गई है।

दुनिया के कई देशों में मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर वर्ष 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। इसे लेबर डे, श्रमिक दिवस या मई डे भी कहा जाता है। श्रम दिवस एक विशेष दिन है जो मजदूरों और श्रम वर्ग को समर्पित है। यह मजदूरों की कड़ी मेहनत को सम्मानित करने का दिन है। ज्यादातर देशों में इसे 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रम दिवस का इतिहास और उत्पत्ति अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। विद्यार्थियों को कक्षा में मजदूर दिवस पर निबंध लिखने, मजदूर दिवस पर भाषण देने के लिए कहा जाता है। इस निबंध की मदद से विद्यार्थी अपनी तैयारी कर सकते हैं।

मकर संक्रांति का त्योहार यूपी, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में 14 जनवरी को मनाया जाता है। इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान के बाद पूजा करके दान करते हैं। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड, चिउड़ा-दही खाने का रिवाज है। प्रयागराज में इस दिन से कुंभ मेला आरंभ होता है। इस लेख में मकर संक्रांति के बारे में बताया गया है।

पर्यावरण से संबंधित मुद्दों की चर्चा करते समय ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा अक्सर होती है। ग्लोबल वार्मिंग का संबंध वैश्विक तापमान में वृद्धि से है। इसके अनेक कारण हैं। इनमें वनों का लगातार कम होना और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रमुख है। वनों का विस्तार करके और ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण करके हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के समाधान की दिशा में कदम उठा सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- कारण और समाधान में इस विषय पर चर्चा की गई है।

भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। समाचारों में अक्सर भ्रष्टाचार से जुड़े मामले प्रकाश में आते रहते हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कई उपाय किए हैं। अलग-अलग एजेंसियां भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करती रहती हैं। फिर भी आम जनता को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। हालांकि डिजीटल इंडिया की पहल के बाद कई मामलों में पारदर्शिता आई है। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले कम हुए है, समाप्त नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार पर निबंध के माध्यम से आपको इस विषय पर सभी पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

समय-समय पर ईश्वरीय शक्ति का एहसास कराने के लिए संत-महापुरुषों का जन्म होता रहा है। गुरु नानक भी ऐसे ही विभूति थे। उन्होंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत कर दिया। गुरु नानक की तर्कसम्मत बातों से आम जनमानस उनका मुरीद हो गया। उन्होंने दुनिया को मानवता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। भारत, पाकिस्तान, अरब और अन्य जगहों पर वर्षों तक यात्रा की और लोगों को उपदेश दिए। गुरु नानक जयंती पर निबंध से आपको उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी मिलेगी।

कुत्ता हमारे आसपास रहने वाला जानवर है। सड़कों पर, गलियों में कहीं भी कुत्ते घूमते हुए दिख जाते हैं। शौक से लोग कुत्तों को पालते भी हैं। क्योंकि वे घर की रखवाली में सहायक होते हैं। बच्चों को अक्सर परीक्षा में मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने को कहा जाता है। यह लेख बच्चों को मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने में सहायक होगा।

स्वामी विवेकानंद जी हमारे देश का गौरव हैं। विश्व-पटल पर वास्तविक भारत को उजागर करने का कार्य सबसे पहले किसी ने किया तो वें स्वामी विवेकानंद जी ही थे। उन्होंने ही विश्व को भारतीय मानसिकता, विचार, धर्म, और प्रवृति से परिचित करवाया। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में जानने के लिए आपको इस लेख को पढ़ना चाहिए। यह लेख निश्चित रूप से आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन करेगा।

हम सभी ने "महिला सशक्तिकरण" या नारी सशक्तिकरण के बारे में सुना होगा। "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ बनाने और सभी लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिए किए गए कार्यों को संदर्भित करता है। व्यापक अर्थ में, यह विभिन्न नीतिगत उपायों को लागू करके महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण से संबंधित है। प्रत्येक बालिका की स्कूल में उपस्थिति सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा को अनिवार्य बनाना, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस लेख में "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) पर कुछ सैंपल निबंध दिए गए हैं, जो निश्चित रूप से सभी के लिए सहायक होंगे।

भगत सिंह एक युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए बहुत कम उम्र में ही अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। देश के लिए उनकी भक्ति निर्विवाद है। शहीद भगत सिंह महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वह इसे हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को भी तैयार थे। उनके निधन से पूरे देश में देशभक्ति की भावना प्रबल हो गई। उनके समर्थकों द्वारा उन्हें शहीद के रूप में सम्मानित किया गया था। वह हमेशा हमारे बीच शहीद भगत सिंह के नाम से ही जाने जाएंगे। भगत सिंह के जीवन परिचय के लिए अक्सर छोटी कक्षा के छात्रों को भगत सिंह पर निबंध तैयार करने को कहा जाता है। इस लेख के माध्यम से आपको भगत सिंह पर निबंध तैयार करने में सहायता मिलेगी।

वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "संपूर्ण विश्व एक परिवार है"। यह महा उपनिषद् से लिया गया है। वसुधैव कुटुंबकम वह दार्शनिक अवधारणा है जो सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को पोषित करती है। यह वाक्यांश संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का सदस्य है और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, सभी की गरिमा का ध्यान रखने के साथ ही सबके प्रति दयाभाव रखना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम की भावना को पोषित करने की आवश्यकता सदैव रही है पर इसकी आवश्यकता इस समय में पहले से कहीं अधिक है। समय की जरूरत को देखते हुए इसके महत्व से भावी नागरिकों को अवगत कराने के लिए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर निबंध या भाषणों का आयोजन भी स्कूलों में किया जाता है। कॅरियर्स360 के द्वारा छात्रों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर यह लेख तैयार किया गया है।

गाय भारत के एक बेहद महत्वपूर्ण पशु में से एक है जिस पर न जाने कितने ही लोगों की आजीविका आश्रित है क्योंकि गाय के शरीर से प्राप्त होने वाली हर वस्तु का उपयोग भारतीय लोगों द्वारा किसी न किसी रूप में किया जाता है। ना सिर्फ आजीविका के लिहाज से, बल्कि आस्था के दृष्टिकोण से भी भारत में गाय एक महत्वपूर्ण पशु है क्योंकि भारत में मौजूद सबसे बड़ी आबादी यानी हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए गाय आस्था का प्रतीक है। ऐसे में विद्यालयों में गाय को लेकर निबंध लिखने का कार्य दिया जाना आम है। गाय के इस निबंध के माध्यम से छात्रों को परीक्षा में पूछे जाने वाले गाय पर निबंध को लिखने में भी सहायता मिलेगी।

क्रिसमस (christmas in hindi) भारत सहित दुनिया भर में मनाए जाने वाले बेहद महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। प्रत्येक वर्ष इसे 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का महत्व समझाने के लिए कई बार स्कूलों में बच्चों को क्रिसमस पर निबंध (christmas in hindi) लिखने का कार्य दिया जाता है। क्रिसमस पर एग्जाम के लिए प्रभावी निबंध तैयार करने का तरीका सीखें।

रक्षाबंधन हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व पूरी तरह से भाई और बहन के रिश्ते को समर्पित त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उनके लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों को कोई तोहफा देने के साथ ही जीवन भर उनके सुख-दुख में उनका साथ देने का वचन देते हैं। इस दिन छोटी बच्चियाँ देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन पर हिंदी में निबंध (essay on rakshabandhan in hindi) आधारित इस लेख से विद्यार्थियों को रक्षाबंधन के त्योहार पर न सिर्फ लेख लिखने में सहायता प्राप्त होगी, बल्कि वे इसकी सहायता से रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भी समझ सकेंगे।

होली त्योहार जल्द ही देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला है। होली आकर्षक और मनोहर रंगों का त्योहार है, यह एक ऐसा त्योहार है जो हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाई-चारे का संदेश देता है। होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ हिल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है। होली पर हिंदी में निबंध (hindi mein holi par nibandh) को पढ़ने से होली के सभी पहलुओं को जानने में मदद मिलेगी और यदि परीक्षा में holi par hindi mein nibandh लिखने को आया तो अच्छा अंक लाने में भी सहायता मिलेगी।

दशहरा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बच्चों को विद्यालयों में दशहरा पर निबंध (Essay in hindi on Dussehra) लिखने को भी कहा जाता है, जिससे उनकी दशहरा के प्रति उत्सुकता बनी रहे और उन्हें दशहरा के बारे पूर्ण जानकारी भी मिले। दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख में हम देखेंगे कि लोग दशहरा कैसे और क्यों मनाते हैं, इसलिए हिंदी में दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

हमें उम्मीद है कि दीवाली त्योहार पर हिंदी में निबंध उन युवा शिक्षार्थियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो इस विषय पर निबंध लिखना चाहते हैं। हमने नीचे दिए गए निबंध में शुभ दिवाली त्योहार (Diwali Festival) के सार को सही ठहराने के लिए अपनी ओर से एक मामूली प्रयास किया है। बच्चे दिवाली पर हिंदी के इस निबंध से कुछ सीख कर लाभ उठा सकते हैं कि वाक्यों को कैसे तैयार किया जाए, Class 1 से 10 तक के लिए दीपावली पर निबंध हिंदी में तैयार करने के लिए इसके लिंक पर जाएँ।

बाल दिवस पर भाषण (Children's Day Speech In Hindi), बाल दिवस पर हिंदी में निबंध (Children's Day essay In Hindi), बाल दिवस गीत, कविता पाठ, चित्रकला, खेलकूद आदि से जुड़ी प्रतियोगिताएं बाल दिवस के मौके पर आयोजित की जाती हैं। स्कूलों में बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए उपयोगी सामग्री इस लेख में मिलेगी जिसकी मदद से बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस के लिए निबंध तैयार करने में मदद मिलेगी। कई बार तो परीक्षाओं में भी बाल दिवस पर लेख लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। इसमें भी यह लेख मददगार होगा।

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। भारत देश अनेकता में एकता वाला देश है। अपने विविध धर्म, संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं के साथ, भारत के लोग सद्भाव, एकता और सौहार्द के साथ रहते हैं। भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में, हिंदी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली और बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था। हमारी मातृभाषा हिंदी और देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। हिंदी दिवस पर भाषण के लिए उपयोगी जानकारी इस लेख में मिलेगी।

हिन्दी में कवियों की परम्परा बहुत लम्बी है। हिंदी के महान कवियों ने कालजयी रचनाएं लिखी हैं। हिंदी में निबंध और वाद-विवाद आदि का जितना महत्व है उतना ही महत्व हिंदी कविताओं और कविता-पाठ का भी है। हिंदी दिवस पर विद्यालय या अन्य किसी आयोजन पर हिंदी कविता भी चार चाँद लगाने का काम करेगी। हिंदी दिवस कविता के इस लेख में हम हिंदी भाषा के सम्मान में रचित, हिंदी का महत्व बतलाती विभिन्न कविताओं की जानकारी दी गई है।

प्रदूषण पृथ्वी पर वर्तमान के उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा में है, 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इन प्रभावों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इससे कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी आती है। इतना ही नहीं, आज कई वनस्पतियां और जीव-जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदूषण की मात्रा में तेजी से वृद्धि के कारण पशु तेजी से न सिर्फ अपना घर खो रहे हैं, बल्कि जीने लायक प्रकृति को भी खो रहे हैं। प्रदूषण ने दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों को प्रभावित किया है। इन प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत में ही स्थित हैं। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली, कानपुर, बामेंडा, मॉस्को, हेज़, चेरनोबिल, बीजिंग शामिल हैं। हालांकि इन शहरों ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ और बहुत ही तेजी के साथ किए जाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण पर हिंदी में निबंध के ज़रिए हम इसके बारे में थोड़ा गहराई से जानेंगे। वायु प्रदूषण पर लेख (Essay on Air Pollution) से इस समस्या को जहाँ समझने में आसानी होगी वहीं हम वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पहलुओं के बारे में भी जान सकेंगे। इससे स्कूली विद्यार्थियों को वायु प्रदूषण पर निबंध (Essay on Air Pollution) तैयार करने में भी मदद होगी। हिंदी में वायु प्रदूषण पर निबंध से परीक्षा में बेहतर स्कोर लाने में मदद मिलेगी।

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। पृथ्वी ग्रह का बुखार (तापमान) लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, इसे स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर ईमानदारी से काम करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन पर निबंध के जरिए छात्रों को इस विषय और इससे जुड़ी समस्याओं और समाधान के बारे में जानने को मिलेगा।

हमारी यह पृथ्वी जिस पर हम सभी निवास करते हैं इसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के दौरान हुई थी। पहला विश्व पर्यावरण दिवस (Environment Day) 5 जून 1974 को “केवल एक पृथ्वी” (Only One Earth) स्लोगन/थीम के साथ मनाया गया था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी भाग लिया था। इसी सम्मलेन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भी स्थापना की गई थी। इस विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) को मनाने का उद्देश्य विश्व के लोगों के भीतर पर्यावरण (Environment) के प्रति जागरूकता लाना और साथ ही प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना भी है। इसी विषय पर विचार करते हुए 19 नवंबर, 1986 को पर्यवरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया तथा 1987 से हर वर्ष पर्यावरण दिवस की मेजबानी करने के लिए अलग-अलग देश को चुना गया।

आज के युग में जब हम अपना अधिकतर समय पढाई पर केंद्रित करने का प्रयास करते नजर आते हैं और साथ ही अपना ज़्यादातर समय ऑनलाइन रह कर व्यतीत करना पसंद करते हैं, ऐसे में हमारे जीवन में खेलों का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। खेल हमारे लिए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं, अपितु हमारे सर्वांगीण विकास का एक माध्यम भी है। हमारे जीवन में खेल उतना ही जरूरी है, जितना पढाई करना। आज कल के युग में मानव जीवन में शारीरिक कार्य की तुलना में मानसिक कार्य में बढ़ोतरी हुई है और हमारी जीवन शैली भी बदल गई है, हम रात को देर से सोते हैं और साथ ही सुबह देर से उठते हैं। जाहिर है कि यह दिनचर्या स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है और इसके साथ ही कार्य या पढाई की वजह से मानसिक तनाव पहले की तुलना में वृद्धि महसूस की जा सकती है। ऐसी स्थिति में जब हमारे जीवन में शारीरिक परिश्रम अधिक नहीं है, तो हमारे जीवन में खेलो का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

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हमेशा से कहा जाता रहा है कि ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’, जैसे-जैसे मानव की आवश्यकता बढती गई, वैसे-वैसे उसने अपनी सुविधा के लिए अविष्कार करना आरंभ किया। विज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे व्यवस्थित ज्ञान से है जो विचार, अवलोकन तथा प्रयोगों से प्राप्त किया जाता है, जो कि किसी अध्ययन की प्रकृति या सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिए भी किया जाता है, जो तथ्य, सिद्धांत और तरीकों का प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करता है।

शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कहा जाता है कि सबसे पहली गुरु माँ होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही बड़ा और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना भी उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर की सड़को पर हजारों महिलाएं घंटों काम के लिए बेहतर वेतन और सम्मान तथा समानता के अधिकार को प्राप्त करने के लिए उतरी थीं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन का था जिन्होंने 1910 में यह प्रस्ताव रखा था। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में मनाया गया था।

हम उम्मीद करते हैं कि स्कूली छात्रों के लिए तैयार उपयोगी हिंदी में निबंध, भाषण और कविता (Essays, speech and poems for school students) के इस संकलन से निश्चित तौर पर छात्रों को मदद मिलेगी।

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बाल श्रम को बच्चो द्वारा रोजगार के लिए किसी भी प्रकार के कार्य को करने के रूप में परिभाषित किया गया है जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा डालता है और उन्हें मूलभूत शैक्षिक और मनोरंजक जरूरतों तक पहुंच से वंचित करता है। एक बच्चे को आम तौर व्यस्क तब माना जाता है जब वह पंद्रह वर्ष या उससे अधिक का हो जाता है। इस आयु सीमा से कम के बच्चों को किसी भी प्रकार के जबरन रोजगार में संलग्न होने की अनुमति नहीं है। बाल श्रम बच्चों को सामान्य परवरिश का अनुभव करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और उनके शारीरिक और भावनात्मक विकास में बाधा के रूप में देखा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें बाल श्रम या फिर कहें तो बाल मजदूरी पर निबंध।

एपीजे अब्दुल कलाम की गिनती आला दर्जे के वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रभावी नेता के तौर पर भी होती है। वह 21वीं सदी के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में से एक हैं। कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति बने, अपने कार्यकाल में समाज को लाभ पहुंचाने वाली कई पहलों की शुरुआत की। मेरा प्रिय नेता विषय पर अक्सर परीक्षा में निबंध लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें अपने प्रिय नेता: एपीजे अब्दुल कलाम पर निबंध।

हमारे जीवन में बहुत सारे लोग आते हैं। उनमें से कई को भुला दिया जाता है, लेकिन कुछ का हम पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। भले ही हमारे कई दोस्त हों, उनमें से कम ही हमारे अच्छे दोस्त होते हैं। कहा भी जाता है कि सौ दोस्तों की भीड़ के मुक़ाबले जीवन में एक सच्चा/अच्छा दोस्त होना काफी है। यह लेख छात्रों को 'मेरे प्रिय मित्र'(My Best Friend Nibandh) पर निबंध तैयार करने में सहायता करेगा।

3 फरवरी, 1879 को भारत के हैदराबाद में एक बंगाली परिवार ने सरोजिनी नायडू का दुनिया में स्वागत किया। उन्होंने कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैम्ब्रिज में किंग्स कॉलेज और गिर्टन, दोनों ही पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। जब वह एक बच्ची थी, तो कुछ भारतीय परिवारों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। हालाँकि, सरोजिनी नायडू के परिवार ने लगातार उदार मूल्यों का समर्थन किया। वह न्याय की लड़ाई में विरोध की प्रभावशीलता पर विश्वास करते हुए बड़ी हुई। सरोजिनी नायडू से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पढ़ें।

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Frequently Asked Question (FAQs)

किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- ये हैं- प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार (conclusion)।

हिंदी निबंध लेखन शैली की दृष्टि से मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

वर्णनात्मक हिंदी निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है।

विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

निबंध में समुचित जगहों पर मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविता का प्रयोग करके इसे प्रभावी बनाने में मदद मिलती है। हिंदी निबंध के प्रभावी होने पर न केवल बेहतर अंक मिलेंगी बल्कि असल जीवन में अपनी बात रखने का कौशल भी विकसित होगा।

कुछ उपयोगी विषयों पर हिंदी में निबंध के लिए ऊपर लेख में दिए गए लिंक्स की मदद ली जा सकती है।

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति निबंध है।

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  1. Dil aur dimag ka kachra saaf Karen

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